बुधवार, 16 दिसंबर 2015

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卐 सत्यराम सा 卐
दादू दूर कहैं ते दूर हैं, राम रह्या भरपूर ।
नैनहुं बिन सूझै नहीं, तातैं रवि कत दूर ॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जो राम को इस शरीर से अलग दूर बताते हैं बैकुण्ठ स्वर्ग आदि में, वे स्वयं ही परमात्मा से बहुत दूर हैं । किन्तु राम तो सभी स्थान से परिपूर्ण व्यापक है । ‘नैनहुं बिन’ कहिए ज्ञान विचारमय नेत्र, श्रुति - स्मृतिमय नेत्रों से देख, जैसे रवि, भानु । ऐसे ही आत्मारूप राम भरपूर है । तथापि नेत्रों के बिना जो पुरुष हैं, उनको नहीं भान होता है ॥ 
घूघूका रे बालका, कहै पिता सौं बात । 
सूरज ऊजा कहत है, ये दोरा ही जात ॥
लख पीढी देखी सुणी, नहिं बालक यह बात । 
मिथ्यावादी कहत हैं, नाहिंन सूर उगात ॥

नामरूप सब आतमा, जाण्या गुरुमुख ज्ञान । 
उल्लू को सूझै नहीं, सकल प्रकासै भान ॥

श्लोकः बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च । 
सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयं, दूरस्थं चान्तिके च तत् ॥ - गीता(१३ - १५)

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