शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

= विन्दु (१)५५ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*विन्दु ५५ दिन ३७*
*= अकबर के पूर्व जन्म का वृत्तांत =*
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३७वें दिन सूर्योदय होने पर अकबर बादशाह सत्संग के लिये दादूजी पास बाग में गया और शिर नमा प्रणाम करके हाथ जोड़े हुये सन्मुख बैठ गया और बोला - स्वामिन् ! मेरा कोई पूर्व जन्म का महान् पुण्य होगा, उसी से राज्य, आपका दर्शन और सत्संग प्राप्य हुआ है, किन्तु मुसलमान जाति में जन्म क्यों हुआ ? इसका क्या कारण है ?
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मैं तो समझता हूँ यह कोई मेरे पूर्व जन्म के प्रमाद का ही फल होगा । आप तो सर्वज्ञ समर्थ सन्त हैं, आपसे कुछ भी छिपा नहीं है । अतः आप मेरे पूर्व जन्म का वृत्तांत अवश्य बताने की कृपा करें । अकबर का उक्त प्रश्न सुनकर दादूजी ने कहा - तुम्हारा कथन यथार्थ ही है । अच्छे कर्म का फल अच्छा ही होता है और बुरे कर्म का फल बुरा ही होता है ।
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पूर्व जन्म में तुम मुकुंद नामक नामक ब्रह्मचारी थे, प्रयागराज में तपस्या कर रहे थे, उसी तपस्या के प्रभाव से तुमको राज्य और सन्तों के दर्शन तथा सत्संग का लाभ मिला है और मुसलमान होने का कारण यह है - तपस्या के समय तुम गो का दूध ही पान करते थे । एक दिन आपके शिष्य-गण आपको पिलाने के लिये दूध लाये थे । बिना छाना होने से उस दूध में गो का बाल था ।
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वह पीया गया, ध्यान के समय ध्यान न लगा, तब शिष्यों को पूछा तो ज्ञात हुआ, उस में गो का बाल था, भूल से बिना छाने आपको पिलाया था, उसी से विघ्न हुआ है । तब आपने रुष्ट होकर उनको शाप दिया - 'तुमने मुझे दूध में गो का बाल पिलाया है अतः तुम अगले जन्म में गोभक्षक मुसलमान बनोगे ।
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शाप देने के पश्चात् शिष्यों ने प्राथना की भगवन् ! यह तो आपने अच्छा नहीं किया । हम तो सदा जन्म-जन्म में आपकी ही सेवा करना चाहते थे । आपने यह शाप देकर तो हमको आपकी सेवा से वंचित कर दिया है । तब मुकुंदजी ने कुछ विचार करके कहा - अच्छा तुम सेवा से वंचित नहीं हो सकोगे, कारण तुम तो निर्दोष हो, यह मैंने अपनी विचार शक्ति से जान लिया है । मेरा भी तुम लोगों में प्रेम है, अतः मेरा भी अगला जन्म उसी जाति में होगा और तुमको सेवा का सौभाग्य मिल जायगा ।
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फिर तुमने हुमायूं के पुत्र रूप में जन्म लिया और वे तुम्हारी सेवा करने वालों के रूप में जन्मे यह सुनकर अकबर ने दादूजी महाराज के चरणों में मस्तक रखकर प्रणाम किया । तब दादूजी बोले -
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*= अकबर को उपदेश =*
"पहले किया सो अब भया, अब सो आगे होय ।
दादू तीनों ठौर की, बूझे विरला कोय ॥
अण किया लागे नहीं, कीया लागे आय ।
साहिब के घर न्याय है, जे कुछ राम रजाय ॥"
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किया हुआ ही वर्तमान जन्म में प्राप्त होता है और जो अब करते हैं, वह अगले जन्मों में प्राप्त होगा । इन तीन स्थितियों की बात को यथार्थ रूप से कोई विरला ही जान सकता है, अन्य नहीं जान सकते । बिना किये कर्म का फल किसी को भी नहीं मिलता है, किये हुये कर्म का ही फल मिलता है । परमेश्वर के यहां न्याय ही होता है, अन्याय नहीं होता है । प्राणी के कर्म सम्बन्धी जैसी प्रभु की आज्ञा होती है, उस क्रम से ही प्राणी को कर्मों का भोग होता रहता है । उससे विपरीत कुछ भी नहीं होता है ।
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अतः हे अकबर ! अब तुमको चाहिये -
"निमष न न्यारा कीजिये, अंतर तैं उर नाम ।
कोटि पतित पावन भये, केवल कहतां राम ॥"
निरंतर परमेश्वर का नाम स्मरण किया करो, इससे तुम परम पवित्र होकर प्रभु प्राप्ति के योग्य अधिकारी बन जाओगे ।
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उक्त उपदेश सुनकर अकबर ने फिर पूछा -स्वामिन् ! प्रभु को प्राप्त करने का सुगम मार्ग बताने की कृपा करें । तब दादूजी ने कहा -
"इश्क मुहब्बत मस्त मन, तालिब१ दर दीदार ।
दोस्त दिल हरदम२ हजूर यादगार३ हुशियार ॥
प्रभु में प्रेम करने वाले को चाहिये - अपने को प्रभु प्रेम में मस्त रक्खे तथा वह जिज्ञासु१ प्रभु स्वरूप के दर्शनार्थ चित्त की एकाग्रता रूप द्वार पर निरंतर स्थित रहे । अपने हृदय को प्रतिश्वास२ प्रभुरूप मित्र के सन्मुख रक्खे और उसके नाम - स्मरण३ में निरंतर सावधान रहे ।
(क्रमशः)


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