शनिवार, 19 दिसंबर 2015

= १०१ =

#daduji 
卐 सत्यराम सा 卐
सब तज गुण आकार के, निश्चल मन ल्यौ लाइ ।
आत्म चेतन प्रेम रस, दादू रहै समाइ ॥ 
दादू सेवा सुरति सौं, प्रेम प्रीति सौं लाइ ।
जहँ अविनाशी देव है, तहँ सुरति बिना को जाइ ॥ 
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साभार ~ Rp Tripathi ~
**** तनाव-मुक्त जीवन कैंसे जियें ? :: एक सँक्षिप्त परिचर्चा ****

सरलतम शब्दों में :-- 
तनाव = इक्छा - वास्तविकता (Tension = Expectation - Reality) !! 

अर्थात; जितनी कम इक्छा और वास्तविकता में दूरी; उतना ही कम जीवन में तनाव !! और यदि हम किसी तरह अपनी इक्छा को; वास्तविकता के बरावर कर लें; तो तनाव-शून्य स्थिति में पहुँच सकते हैं !! परन्तु यह संभव कैंसे हो ? आइये इस आलेख में; इस विषय पर कुछ चिंतन करें :-- 

इतनी तथ्य से तो हम सब भली-भाँति परिचित हैं कि :--- 
जीवन में हमें; सिर्फ दूसरों के विचारों से ही नहीं; स्वयं अपने विचारों के साथ भी समझौता करना पड़ता है; क्योंकि जैंसा हम सोचते हैं उसके अनुरूप; सिर्फ अन्य ही नहीं; हम स्वयं भी कार्य नहीं कर पाते ? हम प्रयाश तो करते हैं; परन्तु हम अपने प्रयाशों को किस स्तर पर जाकर पूर्ण-विराम दें ? इस विषय में कोई निश्चित मापदंड निर्धारित ना कर पाने से; वर्तमान में पूर्ण-संतुष्टि; पूर्ण-शांति; पूर्ण-आनंद; का अनुभव नहीं कर पाते हैं !! 

परन्तु यदि हम इस विषय पर; 
इतिहास के पन्नों का अवलोकन करें ? तो इतिहास में हमें एक ऐंसे पात्र अवश्य नजर आते हैं ; जो स्वयं कभी तनाव-ग्रस्त नहीं हुए !! और वह हैं; गीता के महानायक परमात्मा कृष्ण !! ऐंसा नहीं है कि उन्हें कभी जीवन में परेशानियां नहीं आईं ? उनके जीवन में तो इतनी परेशानियाँ आईं कि किसी अन्य के जीवन में दिखनी दुर्लभ हैं; परन्तु फिर भी उनके चेहरे की मुस्कान कभी कम नहीं हुई; उनकी मुरली सदैव बजती ही रही !! 

उनके पैदा होने की खबर मात्र आने से; 
उनके माता-पिता(वसुदैव-देवकी) को जेल में डाल दिया गया !! उनका मामा ही उनका सबसे बड़ा दुश्मन बन गया !! उनके पूर्व पैदा हुई संतानों को उनके कारण मृत्यु-दंड मिला; इस कलंक का भी उन्हें भागी बनना पड़ा !! उनका पालन-पोषण भी अपने माता-पिता से अन्य(यशोदा-नन्द) ने किया !! बचपन में ही उन्हें मारने की अनंत कोशिशें की गईं !! जीवन के अंत तक उनका जीवन संघर्षमय रहा !! शांति-दूत बनकर भी वह दुर्योधन से; पांडवों को पाँच-गाँव भी दिलवा कर; महाभारत-युद्ध को नहीं टलवा सके !! उन्हें सुरक्षा के लिए जमीन नहीं; जल के बीच जाकर रहना पड़ा; आदि आदि !! परन्तु फिर भी उनके व्यक्तित्व में इतना माधुर्य था कि आज भी वह जन जन के आदर्श हैं !! 

यदि कारण जानने के लिए उनके जीवन का अवलोकन करें ? 
तो इसका एक ही कारण नजर आता है कि उनका जीवन; पूर्णतः धर्म-मय अर्थात परहित या प्रेम के लिए समर्पित था !! 

प्रेम तो वही कर सकता है ? 
जिसे अपने किसी अभाव की पूर्ति के लिए; किसी अन्य से अपेक्षा ना हो !! सरलतम शब्दों में; जो आनंद पाने के लिए नहीं; वरन आनंदित हो कार्य कर रहा हो !! क्योंकि जब तक व्यक्ति अभाव-ग्रस्त है; तब तक वह वासना-मय जीवन ही जीता है !! 

और जो प्रेमी है; 
वही चारों प्रकार के भक्तों(आर्त; अर्थार्थी; जिज्ञासु और ज्ञानी) में अंतिम भक्त; ज्ञानी है; जिसे परमात्मा कृष्ण ने; अपना स्वरुप कहा है !! 

अतः तनाव-मुक्त रहने का सरलतम सूत्र है :--- 
जिस पल से हम; या जिस पल में हम; आनंद पाने के लिए नहीं; वरन आनंदित होकर कार्य करने लगें; उसी पल से हम; या उसी पल में हम; तनाव-मुक्त हैं !! और आनंदित रहने के लिए प्रत्येक व्यक्ति प्रतिपल; पूर्णतः सक्षम और स्वतंत्र है !! 

******** ॐ कृष्णम् वन्दे जगत गुरुम ********

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