रविवार, 20 दिसंबर 2015

पद. ४२२

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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https://youtu.be/o8X9iiCZ_Ro
४२२.(फारसी) विरह विनती ।
(राग काफी) वर्ण भिन्न ताल ~
अल्लह तेरा ज़िकर फ़िकर करते हैं,
आशिकां मुश्ताक तेरे, तर्स तर्स मरते हैं ॥ टेक ॥ 
खलक खेश दिगर नेस्त, बैठे दिन भरते हैं ।
दायम दरबार तेरे, गैर महल डरते हैं ॥ १ ॥ 
तन शहीद मन शहीद, रात दिवस लड़ते हैं ।
ज्ञान तेरा ध्यान तेरा, इश्क आग जलते हैं ॥ २ ॥ 
जान तेरा जिन्द तेरा, पाँवों सिर धरते हैं ।
दादू दीवान तेरा, जर खरीद घर के हैं ॥ ३ ॥ 
टीका ~ जब परमेश्‍वर ब्रह्मऋषि से बोले कि हे मेरे रूप ! क्या करते हो ? तब ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव विनती कर रहे हैं कि हे अल्लह ! हम तो प्रभु आपकी ही चर्चा और आपके दर्शन अब तक न होने का फिक्र कर रहे हैं । और हम तो आपके आशिक, दर्शनों के लिये तरस - तरस करके दुनियां की तरफ से मरे जारहे हैं । हे प्रभु ! इस संसार में अपने पराये सभी नष्ट होने वाले हैं, इस प्रकार बैठे हुए विचार करते - करते, दिन बिता रहे हैं । हे सबको देने वाले मालिक ! हृदय रूपी दरबार में या आपके सत्संग रूपी दरबार में बैठे हुए आपका भजन करते हैं । और अन्य राजा - महाराजाओं के महलों में जाते हुए डरते हैं, क्योंकि वहाँ नाना प्रकार के भोग - विलास भोगने वालों के संग से आपकी भक्ति में विघ्न होने की सम्भावना रहती है । और अपने तन - मन से, इनके गुण विकारों को त्यागने के लिये, रात - दिन संग्राम करते रहते हैं । और आपका ही ज्ञान, आपका ही ध्यान, आपका इश्क कहिए विरह रूप अग्नि में रात दिन जलते रहते हैं । हमारे प्राण और जीव, आपके ही हैं । हम आपके चरणों में अपना सिर रखे हुए हैं । हे न्यायाधीश परमेश्‍वर ! हम तो आपके खरीदे हुए, आपके घर के बन्दे हैं । अब हम पर आप कृपा करके दर्शन दीजिये ।
प्रसंग - गुरु दादू को हरि कहा, कहा करत मम रूप । 
तब स्वामी यह पद कहा, तुम्हारा भजन अनूप ॥

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