मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

= ८५ =

卐 सत्यराम सा 卐
ज्यों तुम भावै त्यों खुसी, हम राजी उस बात ।
दादू के दिल सिदक सौं, भावै दिन को रात ॥
दादू करणहार जे कुछ किया, सो बुरा न कहना जाइ ।
सोई सेवक संत जन, रहबा राम रजाइ ॥ 
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com
जिन्हे कर्ता होने का अभिमान है वे अपने अभिमान के कारण ही टूटेंगे।
कितना ही धन इकट्ठा कर ले, कितने ही मकान बना ले, कितनी ही पद-प्रतिष्ठा-सब मृत्यु छीन लेगी।
जिसने कर्ता का भाव छोड़ा, अहंकार छोड़ा वे ही केवल परमात्मा तक पहुंच पाते हैँ।
एक ही मौलिक सूत्र है - मनुष्य कर्ता होने का अहंकार छोड़े।
कर्ता नरक मे ही जीवन जीता है।
पागल की तरह दौड़ता रहता है।
हजार बार हारता है और हार से कुछ नही सीखता। फिर उठ कर दौड़ने लगता है।
जीत से भी कुछ नही सीखता।
हार कर सोचता है कि इस बार हार गया। अगली बार जीत जाऊंगा।
और जीत कर भी मिलेगा क्या?
एक दिन मृत्यु सब छीन लेगी।
इसलिये परम सौभाग्य स्वातंत्र्य का, मोक्ष का रस प्राप्त करना हो तो अहंकार छोड़ दे;
मै हूं ये भाव छोड़ दे मनुष्य।
भक्त सब छोड़ देता है।
वह कहता है:मेरा क्या?
सब तेरा।तू सम्हाल।
बुरा हूं तो तेरा।
भला हूं तो तेरा।
जो काम लेना है ले ले।
राम बनाना है राम बना दे।
रावण बनाना है रावण बना दे।
मै कौन हूं चुनने वाला।
जो तेरी आज्ञा वो ही पूरी कर दूंगा।
तुझसे अन्यथा मेरा कोई होना नही।
इस स्वीकृति मे मुक्ति है।
इस आधीनता मे मुक्ति है।

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