सोमवार, 7 दिसंबर 2015

= ८२ =

卐 सत्यराम सा 卐
सुफल वृक्ष परमार्थी, सुख देवै फल फूल ।
दादू ऊपर बैस कर, निगुणा काटै मूल ॥ 
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साभार ~ नरसिँह जायसवाल ~ धूर्त से दोस्ती 

उज्जयिनी के मार्ग में एक बरगद था। उसी क्षेत्र में एक हंस ने एक धूर्त कौवे से दोस्ती की थी। वह उसी पेड़ पर रहने लगा। गर्मी का मौसम था। एक दिन एक धनुर्धारी मुसाफिर उस पेड़ के नीचे लेटकर विश्राम करने लगा। उसके चेहरे पर धूप पड़ रही थी। यह देखकर हंस ने सोचा कि बेचारे की थोड़ी मदद कर दूं। हंस पंख फैलाकर मुसाफिर को छाया देने लगा। कुछ देर बाद कौवा भी वहीं आया। उसे हंस का काम अच्छा नहीं लगा। उसने मुसाफिर के चेहरे पर बीट डाली और उड़ गया। मुसाफिर अचकचाकर नींद से जागा। उसने बीट पोंछते हुए ऊपर देखा। 
हंस अपनी सेवा में निरत पंख फैलाए वैसे ही बैठा था। मुसाफिर ने सोचा की इसी ने बीट डाली है। उसने तीर से हंस को मार दिया। अर्थात स्वभाव या गुणधर्म के आधार पर ही किसी प्राणी या वस्तु की परख होती है। 
दोस्ती से पहले उसे परखना चाहिए वरना गुणवान को भी किसी गुणहीन के अनकिए का दण्ड भोगना पड़ता है। 
सौजन्य -- सन्मार्ग !

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