बुधवार, 23 दिसंबर 2015

= १११ =

卐 सत्यराम सा 卐
मन पवना गहि आतम खेला, सहज शून्य घर मेला ।
अगम अगोचर आप अकेला, अकेला मेला खेला ॥ 
धरती अम्बर चंद न सूरा, सकल निरंतर पूरा ।
शब्द अनाहद बाजहिं तूरा, तूरा पूरा सूरा ॥ 
अविचल अमर अभय पद दाता, तहाँ निरंजन राता ।
ज्ञान गुरु ले दादू माता, माता राता दाता ॥ 
==================================
साभार ~ Anand Nareliya ~
जिसका स्मरण किया जा सके, वही है नाम; और तो कोई नाम हम बोल नहीं सकते। और जिस पर विचरण किया जा सके, उसी को तो हम पथ कहते हैं; और किसी पथ को तो हम जानते नहीं हैं। अगर इसको बिलकुल ठीक, ठीक से रख दिया जाए, तो बहुत हैरानी होगी। वह हैरानी यह होगी कि अगर इसको ऐसा कहा जाए: जो भी पथ है, वह पथ नहीं; जो भी नाम है, वह नाम नहीं; तो आपकी समझ में…। सीधा अर्थ इतना ही है: दैट व्हिच इज़ ए वे इज़ नॉट ए वे एट ऑल, दैट व्हिच इज़ ए नेम इज़ नॉट ए नेम एट ऑल!
यही कह रहा है वह। वह यही कह रहा है, पहुंचना हो तो पथ से बचना, नहीं तो भटक जाओगे। और जानना हो उसे, पुकारना हो उसे, तो नाम भर मत लेना, नहीं तो चूक जाओगे। और उसके संबंध में इंच भर की चूक अनंत चूक है। कोई इंच भर की चूक छोटी चूक नहीं है; बड़ी से बड़ी चूक है, हो गई।
मारपा के सामने एक युवक आकर बैठा है। वह तीन वर्ष से मारपा के पास है। और मारपा से कह रहा है, रास्ता बताइए। कुछ उसका पता-ठिकाना बताइए। कुछ नाम हो तो बोलिए। और जब भी वह कहता है कि कुछ उसका पता-ठिकाना बताइए, तभी अगर मारपा बोलता भी है, तो एकदम चुप हो जाता है। वैसे बोलता रहता है। और जब भी वह युवक कहता है, कुछ पता-ठिकाना बताइए, अभी तो आप बोल ही रहे हैं, थोड़ा उसका भी, कि वह एकदम आंख बंद करके चुप हो जाता है। अगर मारपा का शिष्य पूछता है कि कोई तो रास्ता बताइए, तो वह चल भी रहा हो रास्ते पर तो एकदम खड़ा हो जाता है।
तीन साल में परेशान हो गया। उसने कहा कि हद्द हो गई। वैसे आप थोड़ा चलते भी हैं, और जब भी मैं रास्ते की बात उठाता हूं कि एकदम ठहर जाते हैं। वैसे आप बोलते हैं, कोई एतराज आपको बोलने में नहीं है, लेकिन जैसे ही मैं उसकी खबर पूछता हूं कि आप आंख बंद करके ओंठ सी लेते हैं। और मैं उसी के लिए आया हूं। न तो आपका बाकी चलना मुझे कोई प्रयोजन है, और न आपकी बाकी बातों से मुझे कोई मतलब है। लेकिन मारपा तो आंख ही बंद करके बैठ जाता है जब ऐसी बात छिड़ती है।
आखिर एक दिन उस युवक ने कहा, अब मैं जाऊं?
मारपा ने पूछा, तुम आए ही कब थे? तीन साल से तुम दरवाजे के बाहर ही घूम रहे हो। आते कहां भीतर? जाने की आज्ञा किससे लेते हो? मैंने एक क्षण को नहीं जाना कि तुम भीतर आए। कई बार मैं द्वार खोल कर खड़ा हो गया। कई बार रुक गया कि शायद मैं चलता हूं, इसलिए तुम प्रवेश न कर पाते होओ। तो मैं खड़ा हो गया। जब भी तुमने सवाल पूछा, मैंने तुम्हें जवाब दिया है।
उस युवक ने कहा, हद्द हो गई। यही तो बेचैनी है कि जब भी मैंने सवाल पूछा, आप चुप रह गए हैं। ऐसे आप बोलते रहते हैं। यह भी इल्जाम मुझ पर आप लगा रहे हैं? इसीलिए तो मैं जाता हूं छोड़ कर तुम्हें कि जब भी मैंने पूछा, आप चुप रह गए हैं।
मारपा ने कहा, वही था जवाब। काश, तुम भी उस वक्त चुप रह जाते! काश, जब मैं चलते-चलते ठहर गया था, तुम भी ठहर जाते! तो मिलन हो जाता हमारा।
बताना है उसके संबंध में, तो मौन होना पड़ता है। चलाना है उसके संबंध में किसी को, तो खड़े हो जाना पड़ता है। उलटी दिखती हैं बातें, लेकिन ऐसा ही है। लाओत्से एक-एक कदम एक-एक चीज को गिराता चलेगा। उस जगह ले जाएगा आपको, जहां कुछ भी न बचे गिराने को। आप भी न बचें! खालीपन रह जाए।
और खालीपन ही निर्विकार है। ध्यान रखें, जहां कुछ भी आया, वहीं विकार आ जाता है। शून्य के अतिरिक्त और कोई पवित्रता नहीं है। शून्य के अतिरिक्त और कोई निर्दोष, इनोसेंट स्थिति नहीं है। जरा सा कंपन एक विचार का, कि नरक के द्वार खुल जाते हैं। जरा सा एक रेखा का खिंच जाना मन में, और संसार निर्मित हो जाता है। जरा सी वासना की कौंध, और अनंत जन्मों का चक्कर शुरू हो जाता है। शून्य, बिलकुल शून्य; नहीं है कोई आकार उठता भीतर, नहीं कोई शब्द, नहीं कोई नाम, नहीं कोई मार्ग, नहीं कोई मंजिल, न कहीं जाना है, न कुछ पहुंचना है, न कुछ पाना है। ऐसी जब कोई स्थिति बनती है, तब ताओ प्रकट होता है। तब मार्ग प्रकट होता है। तब वह नाम सुना जाता है। तब वह अविकारी और सनातन नियम बोध में आता है। वह नियम, अराजकता जिसके विपरीत नहीं है; वह नियम, जो अराजकता को भी अपने गर्भ में समाए हुए है।....osho

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें