रविवार, 6 दिसंबर 2015

= ८१ =

卐 सत्यराम सा 卐
ज्यों राखै त्यों रहेंगे, अपने बल नांही ।
सबै तुम्हारे हाथ है, भाज कत जांही ॥ 
दादू डोरी हरि के हाथ है, गल मांही मेरे ।
बाजीगर का बांदरा, भावै तहाँ फेरे ॥ 
ज्यों राखै त्यों रहेंगे, मेरा क्या सारा ।
हुक्मी सेवक राम का, बन्दा बेचारा ॥ 
साहिब राखै तो रहे, काया मांही जीव ।
हुक्मी बन्दा उठ चले, जब ही बुलावे पीव ॥ 
============================
साभार ~ Anand Nareliya
तुम स्वस्थ तो पैदा ही हुए थे
प्रकृति के साथ तालमेल करो, एक हो जाओ। दमन की बकवास छोड़ दो, लड़ने का खयाल हटा दो। बहो, तैरो मत। मंजिल ज्यादा दूर नहीं है। मगर पहले तुम सहज हो जाओ।
समाज तुम्हें असहज कर रहा है। समाज धर्म के नाम पर तुम्हें असहज कर रहा है, संस्कृति के नाम पर विकृति ला रहा है। तुम्हें स्वस्थ करने की चेष्टा से ही रोग पैदा हो रहा है। तुम स्वस्थ तो पैदा ही हुए थे, तुम जैसे पैदा हुए थे।
झेन फकीर कहते हैं, जैसा तुम्हारा चेहरा था जन्म के पहले, बस! उसी चेहरे को पा लो। जैसे तुम मां के गर्भ में थे बस वैसे ही सरल हो जाओ, दुर्निवार प्रकृति को अंगीकार कर लो। भूख भूख है, प्यास प्यास है, लड़ो मत, सब लड़ना अहंकार है। प्यास को जीतने की कोशिश अहंकार है। भूख को जीतने की कोशिश अहंकार है। काम को जीतने की कोशिश अहंकार है, नियंत्रण करने की सब कोशिश अहंकार है। विजय की यात्रा अहंकार का फैलाव है। लड़ो मत, न कोई विजय करनी है।
मैंने सुना है, बल्ख का एक बादशाह हुआ इब्राहिम; फिर बाद में वह फकीर हो गया। उसने एक नया गुलाम खरीदा। गुलाम एक फकीर था–एक सूफी फकीर। जो रेगिस्तान में यात्रा पर निकला था कि कुछ लोगों ने उसे पकड़ लिया। फकीर सुंदर था, स्वस्थ था, बलवान था। और लोगों ने पकड़ लिया तो उसने इंकार न किया, क्योंकि वह सहज जीवन की धारा में बह रहा था–जो हो! उसने हाथ फैला दिए, उन्होंने जंजीरें डाल दीं। वे भी थोड़े चौंके, क्योंकि वह आदमी मजबूत था और चाहता तो चार को जमीन पर बिछा देता। फिर उसने कहा, किस तरफ चलना है? तो वह उनके साथ हो लिया। रास्ते में उन्होंने पूछा कि मामला क्या है? न तुम लड़े, न तुम झगड़े। हम तुम्हें गुलाम बना लिए हैं, कुछ समझे कि नहीं? दिमाग दुरुस्त है कि पागल हो?
उस फकीर ने कहा कि ‘अगर तुम्हारा दिमाग दुरुस्त है तो हम पागल हैं। और अगर हमारा दुरुस्त है तो तुम पागल हो। दोनों तो एक जैसे नहीं हैं। अब यहां कौन निर्णय करे? निर्णय की कोई जरूरत भी नहीं, लेकिन तुम नाहक ही हथकड़ी का बोझ ढो रहे हो। मैं साथ चलने को तैयार हूं क्योंकि साथ चलना ही मेरी जीवन की प्रक्रिया है।’
वे कुछ समझे नहीं। लेकिन उन्होंने पाया कि आदमी सीधा-साधा है। उन्होंने जंजीर भी निकाल ली। वह उनके साथ-साथ गया। बाजार में जब उनकी बिक्री हुई तो इब्राहिम ने खरीद लिया। इब्राहिम गया था गुलामों की तलाश में, उसका निकट का गुलाम मर गया था। वह फकीर बड़ा सुंदर था, शानदार था। उसको खरीद कर घर ले आया। फकीर नंगा था। इब्राहिम ने कहा कि तुम कैसे वस्त्र पहनना पसंद करोगे? उस फकीर ने कहा, ‘गुलाम की क्या मरजी! मालिक जो कहे।’ इब्राहिम ने कहा, ‘तुम कैसा भोजन पसंद करते हो?’ ‘गुलाम की क्या अभिलाषा! मालिक जो कहे।’ इब्राहिम ने पूछा, ‘कुछ भी तुम्हें कहना हो तो कह दो, ताकि वैसी व्यवस्था तुम्हारे लिए हो जाये। तुम्हारे साथ आते-आते महल तक, मुझे तुमसे लगाव हो गया है। तुम आदमी बड़े अदभुत मालूम होते हो। तुम जैसा चाहो वैसा इंतजाम हो जायेगा।’ उसने कहा, ‘जैसा आप चाहें वैसा इंतजाम कर दें, क्योंकि मैंने तो उसकी मरजी के साथ बहने के सिवाय और कोई मरजी नहीं रखी। मालिक जो चाहे। आप मालिक हैं, मैं गुलाम हूं।’
कहते हैं इब्राहिम उठा, इस आदमी के चरणों पर गिर पड़ा। और उसने कहा कि तुम मेरे गुरु बन जाओ। क्योंकि जो तुम मेरे साथ कर रहे हो काश! मैं भी वह परमात्मा के साथ कर पाऊं। बस! यही तो सार-सूत्र है, इसी की मैं तलाश में था। और एक गुलाम से यह सार-सूत्र मिलेगा, यह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था। मैं अहंकारियों के पीछे भटकता रहा। उनको मैं गुरु समझ रहा था। एक गुलाम से यह सूत्र मिलेगा, यह मैंने कभी सोचा ही नहीं था। फिर इब्राहिम तो एक खुद बड़ा फकीर हुआ, लेकिन यह गुलाम उसका पहला गुरु था।
तुम प्रकृति की मरजी के साथ हो जाओ। कितनी ही कठिनाई हो, फिक्र मत करना, वह सौदा महंगा नहीं है। कठिनाई शुरू-शुरू में मालूम पड़ेगी, क्योंकि समाज ने बड़ी अड़चनें खड़ी कर दी हैं। समाज दुश्मन है प्रकृति का। तुम तो प्रकृति के साथ हो जाओ, पहले प्रकृत हो जाओ, तभी तुम नृत्य के करीब आते-आते नर्तक में एक हो जाओगे।
प्रकृति को जिसने शुद्ध कर लिया, वह परमात्मा के द्वार में प्रवेश कर जाता है। प्रकृति जीती है वर्तमान में, मन जीता है भविष्य और अतीत में। तुम दुर्निवार प्रकृति को पहचानो। वह अभी और यहीं है। और यहीं परमात्मा का द्वार भी है। वर्तमान क्षण में हो जाना ही सब कुछ है। और जो उससे चूका, वह सब चूक जाता है।....osho

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें