शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

= ७५ =


卐 सत्यराम सा 卐
जागत जगपति देखिये, पूरण परमानंद ।
सोवत भी सांई मिलै, दादू अति आनन्द ॥ 
दादू दह दिश दीपक तेज के, बिन बाती बिन तेल ।
चहुँ दिसि सूरज देखिये, दादू अद्भुत खेल ॥
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साभार ~ Anand Nareliya
एक नया भिक्षु आया था। सदगुरु हुई ची ने उससे पूछा, तुम्हारा नाम क्या है बंधु? उस भिक्षु ने कहा, लिंग तुंग। लिंग तुंग का अर्थ होता है, आध्यात्मिक व्याप्ति या सर्वव्यापक आत्मा। इसको आधार बनाकर हुई ची ने एक बढ़िया प्रश्न उठाया। अतिथि भिक्षु से उन्होंने कहा, यह लालटेन देख रहे, लिंग तुंग, सर्वव्यापक आत्मा, यह लालटेन देख रहे? लालटेन जलती थी। अब कृपा करके लिंग तुंग महोदय इसमें प्रवेश कर जावें, क्योंकि आप तो सर्वव्यापी हैं।
झेन फकीर ऐसे प्रश्न उठा देते हैं। बड़े बहुमूल्य प्रश्न हैं, समझ में आ जाएं तो। न समझ में आएं तो बड़े बेबूझ हैं, पागलपन के मालूम पड़ते हैं। अब यह भी कोई बात हुई। उस आदमी ने कहा, लिंग तुंग मेरा नाम है—सर्वव्यापक आत्मा—और यह हुई ची ने एक सवाल उठा दिया कि तब बिलकुल ठीक, मान लिया कि आप लिंग तुंग हैं, सर्वव्यापी हैं, जरा इस लालटेन में प्रवेश कर जाइए। रात्रि थी और कमरे में लालटेन जल रही थी, हुई ची ने खूब अदभुत प्रश्न पूछा। लेकिन जो उत्तर मिला उस अतिथि भिक्षु से, वह और भी अदभुत था। लिंग तुंग ने कहा, मैं तो पूर्व से ही वहां बैठा हुआ हूं। आई एम आलरेडी इनसाइड इट। सर्वव्यापक का मतलब ही यह होता है कि जो सब जगह मौजूद है, अब इसमें और कैसे घुस जाऊं? बैठा ही हुआ हूं पहले ही से यहां मौजूद हूं!
मोक्ष तुम्हारा स्वभाव है, पहले से ही घट गया है। घटा ही हुआ है। परमात्मा तुम्हारे भीतर मौजूद है। परमात्मा को पाना नहीं है, संसार को छोड़ना नहीं है। यह अदभुत बात खयाल में रखना। तुमसे सदा यही कहा गया है, संसार को छोड़ना है और परमात्मा को पाना है। मैं तुमसे कहता हूं परमात्मा को पाना नहीं है और संसार को छोड़ना नहीं है। क्योंकि संसार में कुछ छोड़ने जैसा है नहीं, छूटा ही हुआ है। और परमात्मा तुम्हारे भीतर बैठा ही हुआ है, पाओगे क्या! जागना है, बस जागना है। होश सम्हालना है।....osho

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