रविवार, 6 दिसंबर 2015

= ७९ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू जब लग असथल देह का, तब लग सब व्यापै ।
निर्भय असथल आत्मा, आगै रस आपै ||
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जब तक शरीर अध्यास का भाव रहता है, तब तक हर्ष - शोक, राग - द्वेष, शीत - उष्ण, आदिक द्वन्द्वभाव भासता है और जब समाधि अवस्था में चित्त वृत्ति - आत्म परायण होती है, उस समय सब द्वन्दों से निर्भय होते हैं । जब सुरति में इतनी एकाग्रता हुई कि अनात्म द्वैतभाव को भूलकर केवल ब्रह्म में ही अभेद हो गई तो, मुक्तजन जीवत्व के भ्रम को बिसार कर केवल ब्रह्म रूप ही हो जाते हैं । 
साभार ~ Mukta Arora.

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