रविवार, 6 दिसंबर 2015

(३४. आश्चर्य को अंग=१४)

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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*३४. आश्चर्य को अंग*
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*बेद थके कहि तंत्र थके कहि,* 
*ग्रंथ थके निसवासर गातैं ।* 
*शेष थके शिव इन्द्र थके पुनि,* 
*खोजि कियौ बहु भांति विधातैं ॥*
*पीर थके अरु मीर थके पुनि,* 
*धीर थके बहु बोल गिरा तैं ।* 
*सुंदर मौंन गही सिध साधक,* 
*कौंन कहै उसकी मुख बातैं ॥*
उस का दिन रात वर्णन करते हए भी सभी वेद शास्त्र थक गये । अन्य(सम्प्रदायों के) ग्रन्थों की भी यही दशा है । 
सहस्त्रमुख शेष नाग एवं शंकर तथा देवराज इन्द्र भी थक गये । उधर ब्रह्मा ने भी विविध प्रकार से खोज की, परन्तु वे भी उसकी गम्भीरता को जान नहीं सके । 
पीर(मुसलामानों के धर्म गुरु) और मीर(ज्ञानिराज) तथा अच्छे धैर्यवान् लेखक भी उसके विषय में अधिक बोलने में संकोच करते हैं । 
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - अतः महान् ज्ञानी एवं धैर्यवान् सिद्ध साधक भी उसके विषय में कुछ अधिक कहने से विरत ही रहते हैं । क्योंकि कोई भी विवेकी साधक उसके विषय में कुछ भी बोलना उचित नहीं समझता; कारण यह है कि उसके विषय में बोल कर व्यर्थ कष्ट ही उठाते हैं, जब कि वे उसका वस्तुसत्य(यथार्थ) विवरण करने में समर्थ नहीं हो पाते ॥१४॥ 
(क्रमशः)

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