सोमवार, 7 दिसंबर 2015

= ८४ =

卐 सत्यराम सा 卐
मन चित चातक ज्यों रटै, पीव पीव लागी प्यास ।
दादू दर्शन कारणै, पुरवहु मेरी आस ॥
दादू विरहनी दुख कासनि कहै, कासनि देइ संदेश ।
पंथ निहारत पीव का, विरहनी पलटे केश ॥
दादू विरहनी दुख कासनि कहै, जानत है जगदीश ।
दादू निशदिन बिरही है, विरहा करवत शीश ॥
शब्द तुम्हारा ऊजला, चिरिया क्यों कारी?
तूँही, तूँही निशदिन करूँ, विरहा की जारी ॥ 

चित्र सौजन्य ~ Mukta Arora.

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