बुधवार, 9 दिसंबर 2015

(२२. विपर्यय शब्द को अंग=२)

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI 
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*२२. विपर्यय शब्द को अंग*
.
*अन्धा तीनि लोक कौं देखै,*
*बहिरा सुनै बहुत विधि नाद ।* 
*नकटा वास कमल की लेवै,*
*गूंगा करै बहुत संवाद ॥*
*टूंटा पकरि उठावै पर्वत,*
*पंगुल करै नृत्य अहलाद ।* 
*जो कोउ याकौ अर्थ विचारै,*
*सुन्दर सोइ पावै स्वाद ॥२॥* 
*हस्त लि. १ ली टीका -* 
अंधा = अन्तर्दृष्टी । बहिरा सुनैं = जगत के आकबाक सूं रहित दस प्रकार अनहद सुनै । नकटा = लोकलाज रहित । वास-ब्रह्म सुगंध ले गूंगा  -  जगत मन सों अबोल । टूंटा = क्रिया रहित । पर्वत = पाप । पंगुल = गतिरहित । नृत्य = ध्यान । अहलाद = हर्ष ॥२॥

*हस्त लि. २ री टीका  -*  
अंधा, संसार व्यवहार की तरह सों अन्तर्दृष्टि । सो तीन लोक कौं देषै, यथार्थ जैसे झूंठ सांच, सार असार कौं जाणै, असार त्यागि सार ग्रहण करै । बहिरा-जगत बाद-बिबाद रहित निश्चल चित्त होय अन्तर श्रुति दश प्रकार का अनहद नाद कौं सुनैं । नकटा नाम लोक लाज कुल कांनि रहित निसंक होवै, सो ब्रह्म कमल की बास लेवै, ब्रह्मानन्द रस स्वाद कौं पावै । गूंगा-जगत सबंधी बकबाद सों रहित होय तब बहुत प्रकार को संवाद नाम ब्रह्मनिरुपरण करै । टूंटा-कायक, वायक, मानस तीन स्थान की बिरथा क्रिया रहित । सो पकरि नाम पुरुषार्थ करिके परबत नाम अति भारी पापन को उठावै दूरि करै । पंगुल नाम गुण विकार चपलता रहित । गुणातीत संत । सो निरत नाम अत्यन्त प्रवीणता सौं भगवत ध्यान मैं अत्यन्त आनन्द हरष कौं पावै ॥२॥ 
.
*= पीताम्बरी टीका =* 
“आत्मा हूँ” इस निश्चय करि अहंता और ममतारूप दो नेत्रन के सम्बन्ध तें रहित ज्ञानीरूप जो अंधा । सो जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्तिरूप तीनलोक कूं ब्रह्मचेतन रूप करि प्रकाशै । अथवा ‘लोक’ शब्द का अर्थ प्रकाश होने ते वाह्य सूर्यादिक प्रकाश कूं, और मध्य नेत्रादिक इंद्रियन के प्राश कूं, औ अन्तरवुद्धि रूप प्रकाश कूं, अंतःकरण-बृत्ति-उपहित साक्षिरूप करि देखै । कहिये प्रकाशै है  -  श्रोत्रेन्द्रिय  के सम्बन्ध तें रहित जो ज्ञानीरूप बैरा । सो लौकिक औ शास्त्रीय भेद करि नाना प्रकार के शब्दन का बहुत बिधि नाद सुनै है । 
नासिका इन्द्रिय के सम्बन्ध तें रहित ज्ञानीरूप नकटा सो कमालादिक अनेक पदार्थन की बास लेवै हैं । वाक् इन्द्रिय के सम्बन्ध तें रहित ज्ञानीरूप जो गूंगा, सो नाना प्रकार के लौकिक औ वैदिक शब्दन करि बहुत संवाद करै है । 
हस्त इन्द्रिय के सम्बन्ध तें रहित ज्ञानीरूप जो ठुंठा महान कृत्यरूप पर्वत पकरि के उठावै, कहिये आरम्भ करिके वा की समाप्ति करै है । पादेन्द्रिय के सम्बन्ध तें रहित ज्ञानीरूप जो पंगु, सो यथा पृथवी पर नृत्य, कहिये गमन करि अति अल्हाद कूं पावै है । 
श्री सुन्दरदास जी कहै हैं कि, या सवैये के अर्थ कूं जो कोई मुमुक्ष पुरुष विचारै, सोई जीवन्मुक्तिरूप स्वाद पावै, कहिये श्रेष्ठ सुख का अनुभव करै ॥२॥ 
.
*= श्री सुन्दरदास जी की साखी =*  
अन्धा तीनौ लोक कौं, सुंदर देखै नैंन । 
बहिरा अनहद नाद सुंनि, अतिगति पावै चैन ॥२॥ 
नकटा लेत सुगंध कौं, यह तो उलटी रीत ।  
सुन्दर नाचै पंगुला, गूंगा गावै गीत ॥३॥

*= श्रीदादूवाणी का प्रमाण  =*  
जे रस भीग निछावर जावै, सुंदरि सहजै संग समाइ ।
अनहद बाजे बाजण लागे, जिह्वा हीणे कीरति गाइ । 
-  श्रीदादूवाणी, पद ७१
बिन ही लोचन निरखि नैंन बिन, श्रवण सुनि सोह ।
बिन ही मारग चलै चरण बिन, निहचल बैठा जाई । 
बिन ही पावौं नाचै निस दिन, बिन जिह्वा गुण गावै ॥ 
-  श्रीदादूवाणी, पद २१० 
पांगुलो उजावा लाग्यौ ...जिह्वा बिहूणौं गाये । 
-  श्रीदादूवाणी, पद २१२ ... 
बोलत गूंगे गूंग बुलायै ।
चलते भारी ते बतलाये, अपंग बिचारै सोई चलाये ॥ 
-  श्रीदादूवाणी, २३३ 
चरण बिन चालिबो, श्रवण बिन सुनिबो, बिन कर बेन बजाइये । 
सबद नहीं जहँ, जीव नहीं तहँ, बिन रसना मुख गाइये ॥ 
-  श्रीदादूवाणी, पद २६८ 
देखत अंधे अंध भी अंधे  ... बोलत गूंगे गूंग भी गूंगे ...  
-  श्रीदादूवाणी, पद ३०६ 
दादू बिन रसना जहँ बोलिये, तहँ अंतरजामी आप । 
बिन श्रवणहुँ साँई सुणैं, जे कुछ कीजै जाप ॥२८॥
दादू नैंन बिन देखिबा, अंग बिन पेखिवा, 
रसन बिन बोलिवा ब्रह्म सेती । 
श्रवण बिन सुणिबा, चरण बिन चालिबा, 
चित्त बिन चित्तवा, सहज ऐती ॥१९४॥  
बिन श्रवणहुँ सब कुछ सुणैं, बिन नैंनहुँ सब देखै ।
बिन रसनां मुख सब कुछ बोलै,यहु दादू अचरच पेखै ॥२१४॥ 
-  दादूवाणी, परचै कौ अंग
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें