शनिवार, 19 दिसंबर 2015

पद. ४२१

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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४२१.(फारसी) ईमान साबित ।
(राग काफी) राज मृगांक ताल ~
अल्लह आशिकाँ ईमान, बहिश्त दोजख दीन दुनियां, 
चे कारे रहमान ॥ टेक ॥ 
मीर मीरी पीर पीरी, फरिश्तः फरमान । 
आब आतिश अर्श कुर्सी, दीदनी दीवान ॥ १ ॥ 
हरदो आलम खलक खाना, मोमिना इसलाम । 
हजां हाजी क़ज़ा क़ाज़ी, खान तूँ सुलतान ॥ २ ॥ 
इल्म आलम मुल्क मालुम, हाजते हैरान । 
अजब यारां खबरदारां, सूरते सुबहान ॥ ३ ॥ 
अव्वल आखिर एक तूँ ही, जिन्द है कुरबान । 
आशिकां दीदार दादू, नूर का नीशान ॥ ४ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरु ईमान साबित दिखा रहे हैं कि हे जिज्ञासु ! ईश्‍वर के सच्चे आशिकों का ईमान रूप, वह आप स्वयं अल्लह परमेश्‍वर ही है । उन सच्चे परमेश्‍वर के प्रेमियों को बहिश्त, दोजख(नरक) आदि के सुख दुःख से और दुनियां के दो दीन(हिन्दू मुसलमानों) की रस्म - रिवाज, साम्प्रदायिक झगड़ों से रहमान के भक्तों को क्या काम है ? सरदारों की सरदारी, पीरों की पीरी, फरिश्ताओं की आज्ञा, जल, अग्नि, आकाश और पृथ्वी की विशेषता खोजने की भी उन्हें क्या आवश्यकता है ? हे सुबहान ! वे तो आपके ही केवल दर्शन चाहते हैं । और इस लोक वा परलोक दोनों ही संसार के प्रत्येक प्राणी के घर के, हिन्दू - मुसलमान धर्म और उसमें निष्ठा रखने वाले मोमिनों के, नियत समय पर यात्रा करने वाले हाजियों के, न्याय करने वाले काजियों के, आप ही मुखिया और बादशाह हैं । संसार की जितनी भी ज्ञान आदि विद्या, देश के प्राणियों को व्याकुल करने वाली उनकी इच्छायें, सब कुछ ही उन प्रभु को ज्ञात हैं । अतः हे अद्भुत प्रभु के प्रेमियो ! उन पवित्र प्रभु के स्वरूप - चिन्तन में सावधान रहो । हे प्रभो ! सृष्टि के आदि और अन्त में आप ही रहते हैं । हम अपना जीवन आप पर न्यौछावर करते हैं । हमारा लक्ष्य आपका स्वरूप देखना ही है । आप हम प्रेमियों को दर्शन दीजिये । 
विशेष - इस्लाम धर्म में सृष्टि - क्रम में इन चार तत्त्वों को ही प्रमुखता दी गई हैं - आब(जल), आतिश(अग्नि), अर्श(आकाश), कुर्सी(पृथ्वी) । हवा को विरल रूप से आकाश में समविष्ट मानते हैं । - सं.

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