रविवार, 6 दिसंबर 2015

पद. ४१४

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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४१४. अमिट अविनाशी रंग । धीमा ताल ~
रंग लागो रे राम को, सो रंग कदे न जाई रे ।
हरि रंग मेरो मन रंग्यो, और न रंग सुहाई रे ॥ टेक ॥ 
अविनाशी रंग ऊपनो, रच मच लागो चोलो रे ।
सो रंग सदा सुहावनो, ऐसो रंग अमोलो रे ॥ १ ॥ 
हरि रंग कदे न ऊतरै, दिन दिन होइ सुरंगो रे ।
नित नवो निरवाण है, कदे न ह्वैला भंगो रे ॥ २ ॥ 
सांचो रंग सहजैं मिल्यो, सुन्दर रंग अपारो रे ।
भाग बिना क्यों पाइये, सब रंग मांहीं सारो रे ॥ ३ ॥ 
अवरण को का वरणिये, सो रंग सहज स्वरूपो रे ।
बलिहारी उस रंग की, जन दादू देख अनूपो रे ॥ ४ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव अविनाशी परमेश्‍वर के रंग का परिचय दिखा रहे हैं कि हे जिज्ञासुओं ! हमारे तो केवल एक सच्चिदानन्द रूप अविनाशी निरंजन राम का निष्काम भक्ति रूपी अद्वैत रंग लगा है । अब वह रंग हमारे हृदय से कभी मिटने वाला नहीं है । हरि के उस अविनाशी रंग में हमने हमारे मन को रंग लिया है । अब दूसरे मायावी रंग हमको प्रिय नहीं लगते । वह रंग गुरु कृपा से हमारे हृदय में ही उत्पन्न हुआ है और हमारा चोला कहिए शरीर, उस रंग में रच - मच अर्थात् अति गहरा रंगा है । वह रंग अति शोभनीय सबको प्रिय लगने वाला है । देवता भक्त - जनों को भी अति प्रिय है और फिऱ वह अमूल्य रंग है । यह हरि का रंग कभी भी शरीर में फीका पड़ने वाला नहीं है । हे संतों ! दिन - दिन यह गहरा होता जा रहा है, नित्य नया रूप धारण करता रहता है और फिर निर्वाण है, भक्त को काल कर्म के बाण से रहित कर देता है और कभी नाश को प्राप्त होने वाला नहीं है । यह सच्चा रंग सहज कहिए हमारे पूर्व पुण्य के प्रभाव से ही प्राप्त हुआ है । यह रंग अति सुन्दर और अपार है । परन्तु उत्तम भाग्य के बिना, सब रंगों में यह सबका सार रूप रंग है, इसका प्राप्त होना कठिन है । यह रंग अवर्ण है, इसको क्या कह करके वर्णन करें । वह तो सहज कहिए निर्द्वन्द्व स्वरूप है । इसमें कोई विकार नहीं है । इस रंग की हम बार - बार बलिहारी जाते हैं कि जिसने हमको अनुपम अविनाशी परमेश्‍वर के दर्शन करा दिए हैं ।
भक्त बीज पलटै नहीं, जे जु जांहि अनन्त । 
ऊँच नीच घर औतरे, होय संत का संत

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