गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

पद. ४११

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 


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४११.(फारसी) साहिब सिफत । राज मृगांक ताल ~
महरवान, महरवान! आब बाद खाक आतिश, आदम नीशान ॥ टेक ॥ 
शीश पाँव हाथ कीये, नैन कीये कान । 
मुख कीया जीव दीया, राजिक रहमान ॥ १ ॥ 
मादर पिदर परदः पोश, सांई सुबहान । 
संग रहै दस्त गहै, साहिब सुलतान ॥ २ ॥ 
या करीम या रहीम, दाना तूँ दीवान । 
पाक नूर है हजूर, दादू है हैरान ॥ ३ ॥ 
इति राग ललित सम्पूर्ण ॥ २६ ॥ पद ५ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव साहिब की सिफ्त, कहिए गुण दिखा रहे हैं कि हे जिज्ञासुओं ! वे समर्थ स्वामी परमेश्‍वर अति दयालु हैं । उन्होंने जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि इनके द्वारा मानव की रचना की है । ये सब उनकी अद्भुत शक्ति के चिन्ह हैं । फिर उस समर्थ ने मानव के शरीर के सम्पूर्ण अवयव उचित स्थानों पर ही बनाये हैं और फिर मुख देकर वक्तृत्व शक्ति उसमें रखी है । फिर जीव रूप चेतनता दी है । ये सब देकर वह रहम दिल, कहिए दयालु परमेश्‍वर, चींटी से लेकर हाथी पर्यन्त को आप ही रिजक दे रहे हैं और वे ही सबके माता - पिता रूप हैं तथा सम्पूर्ण दोषों को छिपाने वाले हैं । वे हमारे स्वामी, अति शोभनीक, अपने आत्मीय जनों के हाथ पकड़े हुए सदैव साथ रहते हैं, ऐसे वह हमारे साहिब, बादशाहों के भी बादशाह हैं । हे कृपालु ! हे रहमदिल ! हे जबरदस्तों के भी जबरदस्त दाना ! हे न्यायाधीश ! आपका नूर कहिए स्वरूप पवित्र से भी पवित्र है । हे हुजूर ! ऐसे आपके शुद्ध स्वरूप का दीदार करके आपके हजूरी बन्दे हैरान हो रहे हैं अर्थात् थकित हो रहे हैं ।
इति राग ललित टीका सहित सम्पूर्ण ॥ २६ ॥ पद ५

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