साहिब लेखा माँगेगा रे, उत्तर कैसे दीजे ॥ टेक ॥
आगे जाइ पछतावन लागो, पल पल यहु तन छीजे ।
तातैं जिय समझाइ कहूँ रे, सुकृत अब तैं कीजे ॥ १ ॥
राम जपत जम काल न लागे, संग रहै जन जीजे ।
दादू दास भजन कर लीजे, हरि जी की रास रमीजे ॥ २ ॥
(श्री दादूवाणी)
चित्र सौजन्य ~ मुक्ता अरोड़ा स्वरूप निश्चय.
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