सोमवार, 21 दिसंबर 2015

पद. ४२३

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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४२३. गज ताल ~
मुख बोल स्वामी तूँ अन्तर्यामी, तेरा शब्द सुहावै राम जी ॥ टेक ॥ 
धेनु चरावन बेनु बजावन, दर्श दिखावन कामिनी ॥ १ ॥ 
विरह उपावन तप्त बुझावन, अंगि लगावन भामिनी ॥ २ ॥ 
संग खिलावन रास बनावन, गोपी भावन भूधरा ॥ ३ ॥ 
दादू तारन दुरित निवारण, संत सुधारण राम जी ॥ ४ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव इसमें, विरह विनती कर रहे हैं कि हे हमारे स्वामी राम जी! आप हमसे, अपने मुखारविन्द से बोलिये, क्योंकि अन्तर्यामी राम जी ! आपके मुखारविन्द के शब्द हमको अति प्रिय लगते हैं । आप गऊओं को चराने वाले भगवान कृष्ण रूप राम, मुरली बजाने वाले प्रभु, अपने भक्त रूप कामनियों को अपना दर्शन देने वाले स्वामी हैं । अथवा इन्द्रियाँ रूपी गौओं को सत्ता स्फूर्ति देने वाले, हृदय में अनहद ध्वनि रूप वेणु बजाने वाले, आपकी बुद्धि रूप कामिनी की दर्शन रूप चाहना पूर्ण करने वाले प्रभु ! अपने निष्कामी भक्तों के हृदय में, विरह रूपी दर्द को उत्पन्न करने वाले और फिर दर्शन देकर विरह अग्नि को शांत करने वाले, अपनी भामिनी कहिए प्रिय विरहीजन भक्तों को अपने अंग में लगाने वाले आप ही हैं । फिर अपने भक्तों की सुरति को अपने साथ आप खिलाते हो और उनके साथ रास - लीला रूपी विनोद रचते हो । अपने भक्त रूप गोपियों को प्रिय लगने वाले, गोवर्धन पर्वत को अथवा इस शरीर रूप पर्वत या भूमि को धारण करने वाले आप भूधर हैं । ब्रह्मऋषि कहते हैं कि इस संसार समुद्र से हमको तारने वाले आप ही हो । हे प्रभु ! आप ही संतों की सब प्रकार से बात को सुधारने वाले हैं

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