शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

= ज्ञानसमुद्र(प्र. उ. १८-९) =

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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ प्रथम उल्लास =*
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*- सोरठा -*
*अैसे गुरु पहिं आइ, प्रश्न करै कर जोरि कैं ।*
*शिष्य मुक्त ह्वै जाई, संशय कोऊ नां रहै ॥१८॥*
यदि कोइ जिज्ञासु शिष्य ऐसे शुभ लक्षणों वाले गुरु के पास जाकर उनके सामने हाथ जोड़ कर प्रश्न करे तो वह निश्चय ही मुक्त हो सकता है । उसके हृदय का कोइ भी संशय मिटे बिना नहीं रह सकता ॥१८॥
(तद् विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया - भ॰गी॰ ४/३४)
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*- गुरुदेव की प्राप्ति - चौपाई -* 
*खोजत खोजत सद्गुरु पाया ।*
*भूरि भाग्य जाग्यौ शिष आया ।*
*देखत दृष्टि भयो आनंदा ।*
*यह तौ कृपा करी गोबिंदा ॥१९॥*
इस प्रकार अन्वेषण करता हुआ शिष्य गुरु को प्राप्त कर ही लेता है । यह शिष्य का उदार भाग्योदय ही समझना चाहिये कि वह ऐसे महापुरुष के पास आ पाहुँचा । उस समय उनको देखते ही शिष्य के हृदय में अतिशय आनन्द का अनुभव होता है के यह तो भगवान् की ही कृपा हुई कि मुझे ऐसे गुरु मिल गये ॥१९॥
(क्रमशः)

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