बुधवार, 13 जनवरी 2016

= गुरुदेव का अंग =(१/४-६)

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
"श्री दादू अनुभव वाणी", टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

= श्री गुरुदेव का अँग १ =
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दादू सद्गुरु सहज में, कीया बहु उपकार ।
निर्धन धनवंत कर लिया, गुरु मिलिया दातार ॥४॥
मुझे परम दानी गुरु प्राप्त हुये हैं और उन सद्गुरु ने स्वाभाविक ही मुझ पर बहुत उपकार किया है । मैं आशा द्वारा दरिद्र था किन्तु उन्होंने मुझे परम सँतोष - धन देकर धनी बना दिया है ।
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दादू सद्गुरु सूँ सहजैं मिल्या, लीया कंठ लगाइ ।
दया भई दयाल की, तब दीपक दिया जगाइ ॥५॥
मुझे अनायास ही सद्गुरु मिल गये, उन दयालु गुरुदेव की मुझ पर दया हो गई । तभी उन्होंने मुझे अपना लिया और अपने उत्तम उपदेश द्वारा मेरे हृदय में ज्ञान दीप जगा दिया ।
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दादू देखु दयाल की, गुरु दिखाई बाट ।
ताला कूंची लाइ करि, खोले सबै कपाट ॥६॥
देखो, उन दयालु गुरु देव की दया कितनी महान् है ! जिन्होंने हमें सँसार - मार्ग से मोड़कर, परमार्थ - पथ बताया है और हमारे नाना कर्म - बँधन तालों को अपनीज्ञान - ताली से खोलकर, हृदय - मन्दिर के सँशय, तर्क और विपरीत ज्ञानादि सभी कपाट खोल दिये हैं, अर्थात् सँशयादि नष्ट कर दिये हैं ।
(क्रमशः)

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