बुधवार, 13 जनवरी 2016

= विन्दु (१)६० =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ६० =*
*= तृतीय निवास अन्तर्वेद =*
मथुरा के पास के स्थान में विश्राम के समय कुछ अन्तर्वेद(गंगा यमुना के मध्य प्रदेश) के भक्त आ गये थे । उन लोगों ने दादूजी को अपने यहां ले जाने का बहुत आग्रह किया और कहा - भगवन् ! हमारा ग्राम दूर नहीं है । यमुना के पार ही है आप अवश्य पधारने की कृपा करें ही । भक्तों का अति आग्रह देखकर दादूजी ने स्वीकार कर लिया ।
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फिर वहां से अन्तर्वेद में उनके ग्राम पधारे और उनके भाव प्रेम के अनुसार कुछ दिन वहां रहे और उनके अधिकार के अनुसार उनको ज्ञान भक्ति आदि का उपदेश देकर कृतार्थ किया । इस अन्तर्वेद के स्थान में दादूजी का तृतीय विश्राम था । फिर वहां के भक्तों को संतुष्ट करके विचरते हुये करोली राज्य में प्रवेश किया ।
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*= चौथा निवास उदेही =*
करोली राज्य के उदेही ग्राम के पास आये तब ग्राम के बाहर बालक खेल रहे थे । दादूजी जब शिष्यों सहित उन बालकों के पास पहुँचे तब तत्काल ही हरि उन बालकों में बालक रूप में प्रकट हो गये और बालकों को बोले - अरे ! दादूजी आये, सब दादू दादू बोलो - बालकरूप हरि की प्रेरणा से सब बालक दादू दादू बोलने लगे । उनके साथ बालरूप हरि भी बोलते थे । बालकों का समूह 'दादू दादू' बोलते हुये नाचने लगा ।
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इस प्रकार बालकों का बोलना सुनकर दादूजी के शिष्यों को भी अति आश्चर्य हुआ कि इन बालकों को दादू नाम किसने बताया । फिर दादूजी ने कहा - राम-राम बोलो । बालक राम-राम बोलने लगे । फिर बालक रूपधारी राम ने कहा - जोर-जोर से दादू-दादू बोलो, तब बालक दादू दादू बोलने लगे । इस प्रकार विवाद चल पड़ा । दादूजी की बात बालकों ने नहीं मानी तब हार कर दादूजी ने ध्यान द्वारा देखा तो स्वयं हरि ही बालक रूप में बालकों को प्रेरणा कर रहे हैं कि दादू दादू बोलो ।
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दादूजी ने कहा -
"दादू दादू कहत है, आपे सब घट माँहिं ।
अपनी रुचि आपहि कहैं, दादू तैं कुछ नांहिं ॥
हम से हुआ न होयगा, ना हम करणे जोग ।
ज्यूं हरि भावे त्यूं करो, दादू कहै सब लोग ॥"
स्वयं हरि ही सबके अन्तःकरण में स्थित होकर दादू-दादू कहते हैं और बाहर से भी प्रेरणा करते हैं । अतः ये सब बालक भी हरि द्वारा दी हुई प्रीति से आप ही कहते हैं, मेरा तो इनसे कुछ भी संबन्ध नहीं है । यहां मेरे से कुछ भी नहीं होगा और हरि के आगे मैं कुछ भी करने योग्य भी नहीं हूं । जैसा हरि को प्रिय होगा वैसा ही हरि करेंगे । हरि इच्छा से सब लोग दादू-दादू कहने लगे हैं । फिर दादूजी ने विचार करके प्रभु से प्रार्थना की -
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*= 'दादू राम' मंत्र प्रचलन =*
प्रभो ! अकेला दादू-दादू बोलना तो मेरे को रुचिकर नहीं है । तब हरि ने कहा - अच्छा प्रथम तुम्हारा नाम फिर हमारा नाम रहेगा । ऐसा कहकर बालकों में स्थित बालक रूप हरि बोलने लगे - 'दादूराम, दादूराम. दादूराम' । उनकी प्रेरणा से सब बालक भी बोलने लगे - 'दादूराम, दादूराम, दादूराम' । इस प्रकार सब बालकों ने अतिप्रेम से नाचते हुये 'दादूराम' मन्त्र की ध्वनि से आकाश को भर दिया ।
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उस समय से 'दादूराम' मन्त्र प्रचलित हुआ । 'दादूराम' मन्त्र को प्रचलित करके हरि बालकों में ही अन्तर्धान हो गये । हरि को ऐसा करना ही रुचिकर था इससे उन्होंने ऐसा किया था । फिर जैसे लक्ष्मीनारायण, सीताराम, राधेश्याम आदि मन्त्र हैं, वैसे ही 'दौराम' मन्त्र प्रचलित हो गया । कारण ? भगवान् को भक्त का नाम प्रिय लगता है, इसीसे भगवान् ने अपने प्रिय लगने वाले नाम का स्वयं ही प्रचार किया । फिर करोली राज्य में 'दादूराम' मंत्र अति शीघ्र फ़ैल गया ।
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कहा भी है -
"करोली के देश माँहिं रामत करन काज,
स्वामीजी पधारे तहां निकन्दन काल के ।
जहां जहां जाय, तहाँ तहाँ दादू-दादू कहैं,
यही बैन प्रिय लागे मन में कृपाल के ॥
यदपि अदेह राम देह धर ठाड़े भये,
ओत प्रोत भये, मानो चाहे जन लाल के ।
राम कहै दादू कहो, दादू कहे 'राम कहो',
'दादूराम दादूराम' रट रहे बालके ॥
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उदेही के भक्तों को संतुष्ट करके फिर दादूजी महाराज शिष्यों के सहित विचरते हुये करोली नगर के पास पहुँचे । वहां भी बाहर वन प्रदेश में ही ठहरे किन्तु उदेही की घटना की चर्चा दादूजी से पहले ही करोली नगर में पहुँच गुई थी । फिर दादूजी यहां पधारे हैं, यह समाचार सुनकर तो करोली की धार्मिक जनता दादूजी के दर्शनार्थ उमड़ पड़ी ।
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लोग नाना प्रकार की भेंटे भी चढ़ाने लगे किन्तु भेंट की वस्तुवों को साथ की साथ आगत जनता को दादूजी की आज्ञा से दादूजी के शिष्य संत बाँट देते थे । वस्त्र आदि कोई चढ़ाता था तो दीन गरीबों को बाँट देते थे, संग्रह कुछ भी नहीं रखते थे । आने वाले भक्तों को उनके अधिकार के अनुसार सत्य उपदेश देते थे । प्रजा से दादूजी की अत्यधिक महिमा सुनकर करोली नरेश गोपालदास को भी दादूजी के दर्शन की अभिलाषा हुई । उसने भी विचार किया मैं संत दादूजी के दर्शन करने कल अवश्य जाऊँगा ।
इति श्री दादूचरितामृत विन्दु ६० समाप्तः ।
(क्रमशः)

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