रविवार, 31 जनवरी 2016

= ज्ञानसमुद्र(द्वि. उ. ३-४) =

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🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷
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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ द्वितीय उल्लास =*
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*शिष्य उचाव - पद्धड़ी -*
*अब भक्ति कहौ गुरु कै प्रकार,*
*हठ योग अंग पाऊं विचार ॥*
*पुनि सांख्य सु योग बताव नाथ,*
*भवसागर बूड़त गहहु हाथ ॥३॥*
(शिष्य पूछता है -) गुरुदेव ! पहले आप मुझे भक्तियोग के विषय में बताइये कि वह कितने प्रकार का है? हठयोग में कितने अंग हैं - इस विषय में भी आपके विचार(उपदेश) सुनना चाहता हूँ । अन्त में, आप सांख्ययोग का भी उपदेश कीजिये । हे स्वामिन् ! मुझ संसारसागार में डूबते हुए का हाथ पकड़कर डूबने से बचाइये ॥३॥
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*- श्रीगुरुरुवाच - सवइया -*
*प्रथम हिं नवधा भक्ति१ कहत हौं,*
*नव प्रकार हैं ताके भेद ।*
*दशमी प्रेम लक्षणा कहिये,*
*सो पावै जो ह्वै निर्वेद ॥*
*परा भक्ति है ताके आगै,*
*सेवक सेव्य न होई विछेद ।*
*उत्तम मध्य कनिष्ट२ तीन बिधि,*
*सुंदर इनि तें मिटि हैं खेद ॥४॥*
(१. नवधा भक्ति और प्रेमलक्षणा आदि का यह वर्णन स्वमीजी ने किन ग्रन्थों के आधार पर किया सो तो स्पष्ट नहीं होता । परन्तु इनके वर्णन से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ नारद पांचरात्र, शांडिल्य भक्तिसूत्र, भक्तितरंगिणी आदिक ग्रन्थों से सहयोग लिया है ।
२. मूल पुस्तक में 'कनिष्ठा' पाठ है । परन्तु एक मात्रा बढ़ने से 'कानिष्ट' पाठ उत्तम रहेगा ।)
(गुरुदेव कहते हैं -) शिष्य ! पहले मैं तुझे *नवधा भक्ति* का उपदेश करूँगा, जो भेद करने पर ९ प्रकार की हो जाती है । फिर दसवीं भक्ति का, जिसे *प्रेमा भक्ति* कहते हैं, उसे वही पा सकता है जो संसार से सर्वथा निरासक्त हो गया हो । प्रेमा भक्ति से आगे की कोटि में *परा भक्ति*(भक्ति की पराकाष्ठा) आती है जिसके अभ्यास के बाद सेव्य(ब्रह्म) और सेवक(=जीव , आराधक) का अलगाव कभी नहीं हो पाता ।(नवधा कनिष्ठ, प्रेमा मध्यम और परा उत्तम -) यों ये तेनों विधियाँ(भक्तियाँ) उत्तम, मध्यम, और कनिष्ठ कहलाती हैं । *श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - इन तीनों के क्रमिक अभ्यास से साधक के समस्त सांसारिक दुःखों का क्षय हो जाता है ॥४॥
(क्रमशः)

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