मंगलवार, 12 जनवरी 2016

= विन्दु (१)६० =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
.
*= विन्दु ६० =*
*= द्वितीय निवास मथुरा के पास =*
.
आगरा से जब दादूजी मथुरा की ओर चले तब मथुरा को सूचना पहुंच गई कि संत प्रवर दादूजी इधर आ रहे हैं । जब शिष्यों सहित दादूजी मथुरा को जा रहे थे तब मार्ग में अनेक भक्त उनके दर्शन करने के लिये आगे मिलते थे । दर्शन करके परमानन्द में निमग्न हो जाते थे ।
.
फिर मथुरा से एक कोस दूर रहे तब इस आशय से कि नगर में जाने से बहुत भीड़ होगी, वहां ही ठहराना चाहते थे । वहां कुछ भक्त भी दर्शनार्थ आये हुये थे । उन लोगों ने वहां सब व्यवस्था करदी । दादूजी शिष्यों के सहित वहां ठहर गये । यह दादूजी का दूसरा विश्राम स्थान था । फिर मथुरा से बहुत संत तथा भक्त लोग दादूजी के पास आये ।
.
दादूजी ने उनका अच्छा सत्कार किया फिर परस्पर प्रणामादि शिष्टाचार हो जाने पर सब विराज गये तब मथुरा के संत और भक्त मथुरा की वर्तमान स्थिति का परिचय देने लगे । वे बोले - स्वामिन् ! मथुरा के शासक मुसलमान ने मथुरा में घोषणा कर दी है कि - "जो माला धारण करेगा तथा तिलक लगायेगा उसको मृत्यु दंड दिया जायगा ।
.
अतः हम आप के पास इसी उद्येश्य से आये हैं कि आप बादशाह अकबर को ४० दिन तक उपदेश करते रहे हैं, वह आपकी बात मान सकता है । सुनने में भी आया है कि अकबर की आप पर अटूट श्रद्धा हो गई है, सो आप अकबर को कहकर माला तिलक पर लगा प्रतिबन्ध हटाने का यत्न करें । यही हमारा आप से नम्र निवेदन है ।
.
संतों का उक्त निवेदन सुनकर दादूजी ने कहा - संतों ! अकबर के कहे बिना भी यह प्रतिबन्ध शीघ्र ही हट जायगा और नहीं हटे तब तक भी आपका ईश्वर उपासना संबंधी कार्य बन्द तो नहीं हो सकता है । माला तो जप संख्या के लिये रखी जाती है, आप कुछ दिन जप संख्या का अन्य कोई भी साधन अपना लें ।
.
तिलक मात्र संप्रदाय का चिन्ह है, उसके नहीं होने से भी आपकी कोई हानि नहीं होगी । संप्रदाय की-भावना मन से कोई भी नहीं हटा सकता । अतः मृत्यु से बचने के लिये कुछ दिन इन बाह्य चिन्हों को नहीं रखने से मेरे विचार से कोई हानि नहीं हैं । दादूजी का उक्त प्रस्ताव संतों ने मान लिया और कहा - आप कहते हैं कुछ दिन के लिये ही है तब तो कोई बात नहीं, कुछ दिन तो हम आपकी बात मान लेते हैं ।
.
इस घटना का संकेत संत रज्जब ने भी अपनी वाणी में इस प्रकार किया है -
"मथुरा में माला खुली, तिलक ऊतरे मंथ ।
जन रज्जब सब ऊबरे, पड़ दादू के पंथ ॥
दादूजी के पंथ(साधन मार्ग) में पड़कर अर्थात् माला तिलक बिना ही ईश्वर की मानस उपासना को अपना कर मृत्यु से बचे थे । फिर दादूजी का आना सुनकर मथुरा का शासक मुसलमान भी दादूजी के पास आया ।
.
दादूजी का सर्व प्रकार पक्षपात रहित उपदेश सुनकर अति प्रभावित हुआ और बोला - कोई सेवा की आज्ञा दीजिये । दादूजी ने कहा - सेवा करेंगे या कहते ही हैं ।
शासक ने कहा - अवश्य करूँगा । तब दादूजी ने कहा - आपने जो मथुरा में माला तिलक पर प्रतिबन्ध लगाया है वह हटा लीजिये ।
.
शासक ने कहा - वह तो केवल माला तिलक धारण करने वालों की दृढ़ता को को देखने के लिये ही लगाया गया था कि देखूँ तो सही माला तिलक को धर्म मानने वाले कितने व्यक्ति धर्म की रक्षा के लिए मरने वाले मिलते हैं । इससे आगे इसका अन्य कोई लक्ष्य नहीं है, वह तो मैं आप ही हटा दूंगा । आप तो कोई अन्य सेवा बताइये । दादूजी ने कहा - अन्य कोई आवश्यकता नहीं है, सब आनन्द है । फिर उस मथुरा के शासक ने माला तिलक पर से प्रतिबन्ध हटा लिया, फिर पूर्ववत स्वतन्त्रता से माला तिलक सब धारण करने लग गये थे ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें