सोमवार, 18 जनवरी 2016

= १८८ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू सतगुरु अंजन बाहिकर, नैन पटल सब खोले ।
बहरे कानों सुणने लागे, गूंगे मुख सौं बोले ॥ 
टीका ~ सतगुरु ने ज्ञानरूपी अंजन से कहिए, सुरमा से नेत्रों के मलस्वरूप माया के आवरण को हटा कर प्रभु के दर्शन योग्य दृष्टिवान् बनाया । कानों के बहिरापन को मिटा करके प्रभु की महिमा सुनने की कानों में रुचि पैदा की । जो मुख भजन में नहीं लगे थे, उनमें बल, तत्व, शक्ति, प्रभु की महिमा बखान करनेकी प्रवृत्ति उत्पन्न की ॥ 
(अंजन = ज्ञानोपदेश । नेत्र = बुद्धि की ज्ञान विज्ञान प्रवृत्ति । पटल = भ्रम संशय । बहरे = धन, विद्या, रूप, बल, पद, जाति ऐसे मद वाले । गूंगे = हरि स्मरण विहीन वाणी बोलने वाले ।)
अंखियाँ अंजन अंजिया, दृष्टि निर्मली होई । 
नमो नमो जगन्नाथ जन, गुरु बिन करै न कोई ॥ 
सतगुरु अंजन आंजिया, भरि ज्ञान सलाई । 
ज्यों का त्यों ही सूझिया, बखना कूँ भाई ॥ 
मूकंक रोति वाचालं पंगु लंघयते गिरिम् । 
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानंद माधवम् ॥ 
अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानांजन शलाकया । 
चक्षुरून्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नम: ॥ 
(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)

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