रविवार, 24 जनवरी 2016

= गुरुदेव का अंग =(१/२८-३०)

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
"श्री दादू अनुभव वाणी", टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= श्री गुरुदेव का अँग १ =
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सद्गुरु शब्द बाण
दादू शब्द बाण गुरु साधु के, दूर दिशँतर जाय ।
जिहिं लागे सो ऊबरे, सूते लिये जगाय ॥२८॥
२८ - २९ में सद्गुरु के शब्द बाणों की विशेषता दिखा रहे हैं - श्रेष्ठ गुरु के शब्द बाण देशान्तरों में दूर तक चले जाते हैं अर्थात् साधकों के द्वारा सुनने को मिल जाते हैं और वे जिनके लगे हैं, उन साधकों को मोह निद्रा से जगा लिया है । मोह निद्रा से जगने के कारण वे सँसार दु:ख से बच गये हैं ।
सद्गुरु शब्द मुख से कह्या, क्या नेड़े क्या दूर ।
दादू सिख श्रवणों सुन्या, सुमिरन लागा सूर ॥२९॥
सद्गुरु के मुख से निकले हुये शब्द समीप वो दूर देश में स्थित साधकों का भी उद्धार करते हैं । जहां भी सद्गुरु शब्द शिष्यों ने सुने, वहां ही वे हरि - स्मरण में लग कर काम क्रोधादि शत्रुओं को जय करने में वीर बन गये हैं ।
करनी बिना कथनी
शब्द दूध घृत राम रस, मथ कर काढे कोइ ।
दादू गुरु गोविन्द बिन, घट घट समझ न होइ ॥३०॥
३० - ३३ में कर्त्तव्य रहित कथन का परिचय दे रहे हैं - सद्गुरु के शब्द - दूध में ब्रह्मानन्द - घृत भरा हुआ है किन्तु उन शब्दों से विचार द्वारा कोई विरला जिज्ञासु ही ब्रह्मानन्द को निकाल कर प्राप्त करता है । गुरु और गोविन्द की कृपा बिना सद्गुरु - शब्दों से ब्रह्मानन्द प्राप्त करने की विचार शक्ति प्रत्येक शरीरधारी को प्राप्त नहीं होती ।
(क्रमशः)

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