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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*विन्दु ५८ दिन ४०*
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"गोष्टी करी दिवस चालीसा,
पार न पायो बिसव बीसा ।
टेक अहै जैसी पह्लादू,
ज्ञान कबीर सुहावे दादू ॥१॥
ध्यान मनौं शुकदेव शरीरा,
जोग-जुगति गोरख से नीरा ।
माया-मोह नहीं दुःख दुन्दू,
जब देखो तब परमानन्दू ॥२॥"
(जनगोपाल कृत दादू जन्मलीला परची, विश्राम ७)
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उक्त विचार करने के पश्चात् अकबर बादशाह राजा बीरबल के साथ राज भवन को चला गया और भोजनादि से निवृत्त होकर फिर अकबर ने राजा बीरबल को बुलाया और पूछा - दादूजी तो अब जाने वाले हैं । हमको अब क्या करना चाहिये ? तुम सोच विचार करके बताओ ।
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तब बीरबल ने कहा - आज आपको दादूजी का दर्शन पुनः करना चाहिये और नम्रभाव से प्रणाम करके दीन भाव द्वारा उनको प्रसन्न करके उन से शुभाशीर्वाद लेना चाहिये और जो भी वे आशीर्वाद दें उसे ही शिरोधार्य मानना चाहिये । संतों के आशीर्वाद से परमेश्वर प्रसन्न होकर दया करते हैं और संतों के कुपित होने पर परमेश्वर भी कोप करते हैं ।
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राजा बीरबल का उक्त परामर्श सुनकर अकबर ने कहा - अच्छा तुम दादूजी को शीघ्र ही यहां बुलाओ । हम तुम्हारे परामर्श के अनुसार ही करेंगे । तब राजा बीरबल समाचार गृह में आये और प्रथम तो सोचा इस समय स्वामीजी क्या कार्य करते हों अर्थात् कहीं ध्यानस्थ हों तो ।
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अतः राजा बीरबल ने सोचकर कि प्रथम खोजा को भेजकर आने की प्रार्थना करूं जिससे उनके कार्यक्रम का पता भी लग जाय और कोई विशेष कार्य न होगा तो वे आ भी जायेंगे । फिर खोजा को भेजा । खोजा ने जाकर दादूजी को प्रेमपूर्वक प्रणाम किया और कहा - राजा बीरबल समाचार गृह में हैं और आप से प्रार्थना करते हैं यदि आप की आज्ञा हो तो मैं आपको बुलाने आऊं और यदि आप खोजा द्वारा ही पधार जायें तो मुझे यहां दर्शन हो जायेंगे । अकबर बादशाह इस समय आपका दर्शन चाहते हैं पधारने की कृपा करैं ।
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खोजा द्वारा बीरबल की प्रार्थना सुनकर दादूजी उसी समय चलने को तैयार हो गये । आसन पर जगजीवन आदि को रखकर जनगोपाल शिष्य को संग लेकर खोजा के साथ राजा बीरबल के पास आये । दादूजी के आने की सूचना पाकर राजा बीरबल ने दादूजी के सन्मुख जाकर प्रणाम किया और हाथ जोड़कर कहा - परमेश्वर मुझे आप की शरण में सदा रखें तो बहुत अच्छा हो फिर अकबर की दर्शन की अभिलाषा की बात कही और कहा - हे सर्वहितैषी स्वामिन् ! आप कृपा करके बादशाह को दर्शन दो । फिर राजा बीरबल दादूजी को लेकर अकबर बादशाह के दरबार आये ।
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राजा बीरबल ने आगे बढ़कर देखा तो अकबर दादूजी के प्रतीक्षा में खड़े हुये हैं । उनके पास जाकर बीरबल ने कहा - दादूजी पधार गये हैं । फिर अकबर ने दादूजी सामने आकर सत्यराम बोला, अपनी जाति की पक्ष से सलाम नहीं बोला । कारण ? दादूजी को उसने सदा निर्पक्ष ही देखा था, अतः उनके सत्संग से अकबर में भी उस समय निर्पक्षता का भाव आ गया था । फिर अकबर बोला - स्वामिन् ! आप तो जैसे हंस मिले हुये जल दूध को अलग-अलग कर देता है, वैसे ही मिले हुये सत्य असत्य को अलग करके दिखा देते हैं । अतः अब आप कुछ ईश्वर संबन्धी बातें कहैं ।
(क्रमशः)
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