शनिवार, 30 जनवरी 2016

= ज्ञानसमुद्र(द्वि. उ. १-२) =

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🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷
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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ द्वितीय उल्लास =*
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*(भक्ति सिद्धान्त) - अन्तःकरणशुद्धि कैसे हो?*
*- दोहा -*
*स्वमी हृदय मलीन मम, शुद्धि कवन विधि होइ ।*
*सोई कहौ उपाई अब, संशय रहे न कोइ ॥१॥*
(शिष्य कहता है -) स्वमिन् ! आप उचित ही कहते हैं कि मेरा अन्तःकरण मलिन है, इसीलिये मैं आप के बताये तत्व को नहीं समझ पा रहा हूँ । अब कृपया आप ही वह विधि बताइये, जिससे मेरा यह अन्तः करण शुद्ध हो जाय और वह उपाय भी बतलाइये कि जिससे मुझे अद्वैत के विषय में कोइ सन्देह न रह पावे ॥१॥
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*- श्रीगुरुरुवाच - चौपई -*
*सुनहिं शिष्य ये तीनि उपाई ।*
*भक्ति योग हठ योग कराई ॥*
*पुनि सांख्य सु योग हि मन लावै ।*
*तब तूं शुद्ध स्वरूप हि पावै ॥२॥*
(गुरु कहते हैं -) हे शिष्य, सुनो ! अन्तःकरणशुद्धि के ये तीन उपाय हैं - तुझे पहले भक्तियोग की, तदनन्तर हठयोग की साधना करनी चाहिये । फिर तीसरे, सांख्ययोग का मनन करना चाहिये(अर्थात् इन तीनों का तुझे अभ्यास करना चाहिये) । तभी तूँ अपने शुद्ध स्वरूप(ब्रम्हत्व) को पहचान सकेगा ॥२॥
(क्रमशः)

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