शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

= ज्ञानसमुद्र(प्र. उ. ८) =

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🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷
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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ प्रथम उल्लास =*
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*जिज्ञासु-लक्षण + सवइया*
*जे गुरुभक्त विरक्त जगत सौं,*
*है जिनकै संतनि कौ भाव ।*
*वै जिज्ञास उदास रहत हैं,*
*गनत न कोऊ रंक न राव ॥*
*बाद बिबाद करत नहिं कबहूँ,*
*वस्तु जानिबे कौ अति चाव ।*
*सुन्दर जिनकी मति है ऐसी,*
*ते पैठहिंगे या दरियाव ॥८॥*
जो सज्जन गुरुभक्त हैं, जगत् से विरक्त हैं, सन्त महात्माओं के प्रति जिनका श्रध्दाभाव है, जो जगत् के व्यवहार में उदासीन रहते हैं, राजा(अमीर) और रंक(गरीब) को समान भाव से देखते हैं । जो जिज्ञासु किसी से भी व्यर्थ वाद विवाद नहीं करते, जिन्हें वस्तुतत्त्व(परमात्मतत्त्व, जो कि इस ग्रन्थ का लक्ष्य है) को जानने की ही अतिशय उत्कण्ठा हो, महाकवि कहते हैं, जिन सज्जनों के ऐसे आचार-विचार हों, वे ही इस ज्ञानसमुद्र का गम्भीर अवगाहन कर पायँगे ॥८॥
(क्रमशः)

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