शनिवार, 23 जनवरी 2016

= विन्दु (१)६४ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ६४ =*
*= दौसा प्रसंग, गेटोराव पर जलेबी, परमानन्द को पुत्र प्राप्ति वर =*
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गेटोराव की उक्त घटना(पीपल हरा होना तथा जलेबी आना) एक व्यक्ति ने देखी थी । फिर वह दौसा में जाकर सब को बोला । दौसा के परमानन्द चौखा बूसर गोती खंडेलवाल वैश्य ने जब गेटोराव की उक्त घटना सुनी तो उसने समझा वे कोई अवश्य सिद्ध महात्मा होंगे ।
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वह शीघ्र ही गेटोराव पर गया, तब संत पीपल के नीचे विश्राम कर रहे थे । उसने जाकर प्रत्यक्ष देखा कि सूखा पीपल हरा हो गया है । परमानन्द ने संतों को साष्टांग दंडवत किया और हाथ जोड़ के सन्मुख बैठ गया । फिर प्रार्थना की आप सब संत दौसा में पधार करके मेरा घर पवित्र करने की कृपा अवश्य करें ।
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*= परमानन्द चौखा के घर पर जाना =*
उसकी उक्त प्रार्थना सुनकर दादूजी ने कहा - हम तो दौसा से ही यहां आये हैं और दौसा में स्वयं भी ठहर कर अपनी दैनिक क्रिया स्नानादि तथा साधना करना चाहते थे किंतु किसी ने भी न तो राम राम ही किया और न ठहरने ही दिया । तब इस तालाब पर आकर अपनी दैनिक क्रिया तथा साधना की है । इससे हमें तो यही ज्ञात हुआ था कि इस ग्राम में कोई भी संतों को पहचानने वाला है ही नहीं तथा न यहां के लोगों का कोई पुण्य ही है, जिसके प्रताप से संतों को ये थोड़ी देर ठहरने दें ।
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दादूजी के उक्त वचन सुनकर परमानन्द चौखा ने कहा - स्वामिन् ! आपका कथन अक्षरशः सत्य है, यहां अधिकतर जैनियों की बस्ती है और आप जिस मार्ग से पधारें हैं, उस मार्ग में अधिकतर जैनी हैं, वे अपने सांप्रदायिक बन्धनों से बँधे हुये होने से अपने ही साधुओं को प्रणाम करते हैं और उन्हीं की सेवा करते हैं । इसी से आपको किसी ने प्रणाम राम-राम नहीं किया और न ठहरने ही दिया ।
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परमानन्द के उक्त वचन सुनकर दादूजी बोले - यह तो ठीक है, सांप्रदायिकता का बन्धन तो ऐसा ही होता है । परमेश्वर के संबन्ध का अनादर करके सांप्रदायिक संबन्ध का ही आदर करते हैं । वास्तविक संतों को नहीं पहचानते । फिर परमानन्द ने कहा - मुझे जब आपकी सूचना मिली कि संत पधारे थे और नगर से निकलकर गेटोराव विराजे हैं । तब मैं आपके चरणों में आया हूँ । मेरे घर पधारने की कृपा अवश्य करें ।
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फिर परमानन्द के श्रद्धाभाव को देखकर दादूजी ने परमानन्द के घर जाना स्वीकार कर लिया । तब परमानन्द दादूजी महाराज को प्रणाम करके बोला - भगवन् ! ग्राम में जाकर आपको तथा सब संतों को घर ले जाने की मर्यादा से आकर घर ले चलूंगा, आप यहां विराजे रहना । फिर चौखा नगर में आया और अपनी जाति वालों तथा अन्य भक्तों को कहा, दादूजी महाराज को यहां लाना है, अतः हम सब हरिकीर्तन करते हुये गेटोराव चलें और उसी प्रकार नाम संकीर्तन करते हुये और हरियश गाते हुये संतों को मेरे घर पर लायें ।
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इस संकेत को पाते ही भक्त लोग अतिशीघ्र आ गये फिर अपनी योजना के अनुसार भक्त समूह संकीर्तन करता हुआ गया । दादूजी के पास गेटोराव पर पहुँचकर सब ने सत्यराम बोलते हुये साष्टांग दंडवत की । फिर "स्वामी दादूदयालुजी की जय हो" ऐसी धवनि की । फिर चौखा ने पधारने की प्रार्थना की । संत सब दादूजी महाराज के पीछे पीछे चलने लगे । आगे भक्त मंडल हरि नाम तथा हरि यश गाते हुये चल रहा था ।
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परमानन्द चौखा के घर पहुँचकर दादू को उच्च आसन पर बैठने की प्रार्थना की जिससे सबको दर्शन होते रहें, फिर सब संतों को यथा योग्य आसन देकर परमानन्द के साथ सब भक्तों ने गुरुभाव से दादूजी की पूजा की, पश्चात् प्रसाद वितरण किया फिर भक्त लोग अपने घरों को चले गये ।
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पश्चात् संतों की इच्छानुसार भोजन की व्यवस्था कर दी गई । फिर परमानन्द के घर कई दिन ठहरे । प्रातः प्रवचन होता था, दिन में साधकों को अपनी साधन पद्धति बताई जाती थी । सायंकाल भी प्रवचन, आरती और हरिनाम संकीर्तन कर्म से होते थे ।
(क्रमशः)


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