गुरुवार, 21 जनवरी 2016

= ज्ञानसमुद्र(प्र. उ. १६-७) =

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🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷
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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ प्रथम उल्लास =*
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*- पवंगम -*
*शब्द ब्रम्ह परब्रम्ह भली विधि जाँनई ।*
*पञ्च तत्व गुन तीन मृषा करि माँनई ॥* 
*बुद्धिमंत सब संत कहैं गुरु सोइ रे ।*
*और ठौर शिष जाइ भ्रमै जिन कोइ रे ॥१६॥*
जो वेदशास्त्र का पारायण कर चुका हो, जो परब्रह्म को जान चुका हो; पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश- इन पाँचों तत्वों तथा सत्त्व, रज, तम - इन तीन गुणों का मिथ्यात्व समझ चुका हो । सभी बुद्धिमान् सन्त महात्मा ऐसे सत्पुरुष को ही गुरु बनाने की अनुशंसा करते हैं । इसके लिये विभिन्न स्थानों पर जाकर गुरु को खोजने में व्यर्थ समय नष्ट नहीं करना चाहिये ॥१६॥
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*- नन्दा -* 
*ब्राह्मी भूत अवस्था जा महिं होई ।*
*सुन्दर सोई सद्गुरु जाने कोई ॥१७॥*
श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - जो अहर्निश ब्रह्मीभूत अवस्था(सहज समाधि) में लीन रहता हो, ऐसे महापुरुष को ही सद्गुरु बनाना चाहिये ॥१७॥
(क्रमशः)

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