बुधवार, 27 जनवरी 2016

= गुरुदेव का अंग =(१/३७-३९)

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
"श्री दादू अनुभव वाणी", टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= श्री गुरुदेव का अँग १ =
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दादू दीवा है भला, दिवा१ करो सब कोइ ।
घर में धरा न पाइये, जे कर दिया न होइ ॥३७॥
उक्त प्रकार से साधन द्वारा ज्ञान - दीपक जगाना अति उत्तम है । सभी को ज्ञान - दीपक१ जगाना चाहिए । यदि साधन से जगाया हुआ ज्ञान - दीपक न होगा और केवल शास्त्र पढ़कर परोक्ष ज्ञान ही प्राप्त किया होगा तो अन्त:करण में स्थित आत्मा का भी स्वरूप नहीं जान पाओगे ।
दादू दीये का गुण१ ते लहैं, दीया मोटी बात ।
दीया जग में चांदणा, दीया चाले साथ ॥३८॥
ज्ञान - दीपक का ब्रह्म प्राप्ति रूप लाभ१ वे ही प्राप्त करते हैं, जिन्होंने ज्ञान प्राप्त किया है । ज्ञान - दीपक जगाना सँसार में सबसे बड़ी बात है । ज्ञान - दीपक हृदय में जगते ही सँसार में ब्रह्म का सत्ता - प्रकाश फैला हुआ भासने लगता है और ज्ञान - दीपक आत्म स्वरूप होने से अपने साथ ही चलकर ब्रह्म में लय होता है । उक्त ३७ - ३८ की साखियों में "दीया" के अर्थ साधारण दीपक और दान भी होते हैं किन्तु वे गौण हैं, प्रकरणार्थ ज्ञान - दीप ही है ।
निर्मल गुरु का ज्ञान गह, निर्मल भक्ति विचार ।
निर्मल पाया प्रेम रस, छूटे सकल विकार ॥३९॥
हमने भ्रम, प्रमाद और वंचनादि मल से रहित गुरु का ज्ञान ग्रहण करके कामना - मल रहित नवधा भक्ति और वासना - मल रहित प्रेम - रस प्राप्त किया है । उससे हमारे मन इन्द्रियादि के सब दोष नष्ट हो गये हैं ।
(क्रमशः)

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