सोमवार, 25 जनवरी 2016

= ७ =


卐 सत्यराम सा 卐
सतगुरु चरणां मस्तक धरणां, राम नाम कहि दुस्तर तिरणां ॥ टेक ॥
अठ सिधि नव निधि सहजैं पावै, अमर अभै पद सुख में आवै ॥ १ ॥
भक्ति मुक्ति बैकुंठा जाइ, अमर लोक फल लेवै आइ ॥ २ ॥
परम पदारथ मंगल चार, साहिब के सब भरे भंडार ॥ ३ ॥
नूर तेज है ज्योति अपार, दादू राता सिरजनहार ॥ ४ ॥
===================================
साभार ~ Rajendra Prasad Sharma ~

यह सन्मति मिलती सद्गुरु से ।
परमोन्नति मिलती सद्गुरु से 
जिसके द्वारा दिखने लगता इस दुनिया का सुख दुःख सपना ।
नित्य सुलभ सत चेतन के बिन नही दीखता कोई अपना 
सहज विरति मिलती सद्गुरु से ।

जिसके बल से हानि लाभ मानापमान में रहें समस्थित ।
जिसके बल से अनुभव होता, प्रभु ही हैं सर्वत्र उपस्थित ।
ऐसी धृति मिलती सद्गुरु से ।

आते जिससे दोषों के आने का रहता कोई द्वार नहीं है 
जिससे प्रलोभनों के आगे होती अपनी हार नहीं है 
वही सुकृति मिलती सद्गुरु से ।

जिससे माया मान मोह में फंस कर कहीं न धोखा खाएं ।
जिसके कारन जग में बंधते पुनः न ऐसे कर्म बनाएं  
वह सुस्मृति मिलती सद्गुरु से ।

जिसके द्वारा जग प्रपंच का रहता कुछ भी ध्यान नहीं है ।
जिसके द्वारा 'पथिक' सत्य का कहीं भूलता ज्ञान नहीं है  
वही सुरति मिलती सद्गुरु से 
संत वचन पर उदगार -
राम नाम के पट तरे दैवे को कछु नाहिं 
क्या लै गुरु संतोषिये हौंस रही मन माहिं
- कबीर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें