सोमवार, 25 जनवरी 2016

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卐 सत्यराम सा 卐
दादू ध्यान धरे क्या होत है, जो मन नहीं निर्मल होइ ।
तो बग सब ही उद्धरैं, जे इहि विधि सीझै कोइ ॥ 
दादू ध्यान धरे क्या होत है, जे मन का मैल न जाइ ।
बग मीनी का ध्यान धर, पसू बिचारे खाइ ॥ 
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---------- दृष्टि का फेर ----------
स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस से पूछा - बहुत से पंडित अनेक शास्त्रों का पाठ करते हैं, वेद पाठ में ही संपूर्ण जीवन बीता देते हैं। इन सबके बावजूद उन्हें ज्ञान-लाभ क्यों नहीं होता ?

स्वामी जी ने हंसते हुए उत्तर दिया - चील-गिद्ध आदि पक्षी उड़ते तो बहुत ऊंचाई पर हैं लेकिन उनकी दृष्टि पृथ्वी पर पड़े सड़े मांस के टुकड़ों पर ही रहती है। ठीक उसी प्रकार वेद शास्त्रों एवं ग्रंथों का पाठ करने से क्या लाभ होगा ?

उनका मन तो हमेशा सांसारिक वस्तुओं की ओर ही लगा रहता है। 

सौजन्य -- सन्मार्ग / साभार अंजू जैन !

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