मंगलवार, 26 जनवरी 2016

= विन्दु (१)६५ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
.
*= विन्दु ६५ =*
*= नागर व निजाम को उपदेश =*
.
दादूजी द्वारा हुये उक्त पद को सुनकर वे जाग गये और उठकर दादूजी के पास आये और प्रणाम करके दोनों ही सामने बैठ गये फिर उनसे दादूजी ने पूछा - आप लोग कहां के हैं ? कहां जा रहे हैं ? तब उन्होंने अपना समाचार दादूजी को सुनाया - भगवन् ! हम तीर्थ यात्रा के लिये निकले हुये हैं ।
.
निजाम ने कहा - मैं अजमेर का उच्च पदाधिकारी हूं किंतु वैराग्य हो जाने से पद छोड़कर अब मैं मक्का जा रहा हूं । नागर ने कहा - मैं गुजराती नागर ब्राह्मण हूं और अब काशी जा रहा हूं । दोनों की बात सुन कर दादूजी ने कहा - मक्का तथा काशी तो यहां तुम्हारे शरीर में ही विद्यमान हैं फिर आप क्यों मार्ग का क्लेश पा रहे हो ।
.
ऐसे दोनों को सामान्य बात कहकर फिर निजाम को कहा -
"अर्श१ इलाही२ रब्बदा३, ईथांईं४ रहमान५ वे ।
मक्का बीच मुसाफरीला६, मदीना मुलतान वे ॥टेक॥
नबी८ नाल९ पैगम्बरे, पीरों हंदा१० थान वे ।
जन तहूँ ले हिकसा११ ला१२, इथां वहिश्त१३ मुकाम वे ॥१॥
इथां आब१४ जमजमा१५, इथां ही सुबहान१६ वे ।
तख़्त रबानी१७ कंगुरेला१८, इथां ही सुलतान वे ॥२॥
सब इथां अंदर आव वे, इथां ही ईमान१९ वे ।
दादू आप७ वंजाइ२० बेला२१, इथां ही आसान वे ॥३॥
.
जगत्-पालक३ दयालु५ ईश्वर२ के रहने का सबसे ऊंचा स्वर्ग१(सहस्त्रार चक्र) यहां४ शरीर में ही है । यात्रा६ करने वालों के लिये-मक्का, मदीना और मुलतान ये ईश्वर-दूतों८ पैगम्बरों और पीरों के१० स्थान भी अपने साथ९(नाभि, ह्रदय, त्रिकुटी) शरीर के बीच में ही हैं ।
.
हे जन ! वृत्ति को संसार दशा से ऊंची लेकर उक्त शरीरस्थ स्थानों में ही स्थिर करके एक११ परब्रह्म से ही लगा१२ । यहां ब्रह्माकार वृत्ति जन्य जो सुख है, वही स्वर्ग१३ स्थान है । अरब में स्थित मक्का नगर के काबे का जो "जमजम" नामक कूप१५(मुसलामानों का पवित्र तीर्थ) है, उसका पवित्र१६ जल१४ भी शरीर में ही(तालु मूल से टपक रहा) है, छोटे छोटे शिखरों१८ वाला जगत्-पालक१७ ईश्वर का, सिंहासन(अष्ट दल कमल) भी शरीर में ही है ।
.
शरीर में ही बादशाह(मन) है । सब कुछ यहां शरीर में में ही है । तुम सब के अहंकार७ का त्याग२० करो, यही समय२१ अहंकार त्यागने का है, फिर वृत्ति को अन्तर्मुख करके भीतर आओ । शांति प्रदान करने वाला(सत्य ईश्वर रूप) धर्म१९ शरीर में ही है और उसको प्राप्त करना इस मानव शरीर में ही सुगम पड़ता है । इस पद के द्वारा निजाम को उपदेश दिया । इसे सुनकर उसका मुख मंडल प्रसन्न भासने लगा ।
(क्रमशः)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें