सोमवार, 25 जनवरी 2016

= ज्ञानसमुद्र(प्र. उ. ३०-१) =


🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
.
*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ प्रथम उल्लास =*
.
*- गुरु की प्रसन्नता - सोरठा -*
*मुदित भये गुरुदेव, देखि दीनता शिष्य की ।*
*सबै बताऊँ भेव, जोई जो तू पूछिहै ॥३०॥*
शिष्य की यह विनययुक्त वाणी सुन कर गुरुदेव प्रेमविह्वल हो उठे । उन ने कहा – शिष्य ! तूँ शान्तचित्त हो । (ब्रह्म के विषय में) जो कुछ भी तूँ पूछेगा मैं तुझे कुछ भी बिना छिपाये, वह सब कुछ बताऊँगा ॥३०॥
.
*- शिष्य का प्रश्न - पद्धरी -* 
*कर जोरि सिख करि प्रणाम ।*
*तब प्रश्न करी मन धरि बिराम ॥*
*हौं कौंन, कौंन यह जगत आहि ।*
*पुनि जन्म मरण प्रभु कहहु काहि ॥३१॥*
तब शिष्य ने दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हुए शान्तचित्त होकर प्रश्न किया – प्रभो ! मैं कौन हूँ । यह दृश्यमान जगत् क्या है ? फिर यह मनुष्य का जन्म-मरण क्यों होता है ? कहाँ से होता है ?॥३१॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें