शनिवार, 30 जनवरी 2016

= २३ =

#daduji 
卐 सत्यराम सा 卐
जे दिन जाइ सो बहुरि न आवै, आयु घटै तन छीजै ।
अंतकाल दिन आइ पहुंता, दादू ढील न कीजै ॥ 
दादू अवसर चल गया, बरियां गई बिहाइ ।
कर छिटके कहँ पाइये, जन्म अमोलक जाइ ॥ 
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नरसिँह जायसवाल ~ 
---------= काल का प्राबल्य =---------
काल का महाचक्र सदैव अविराम गति से घूमता रहता है। काल के समक्ष सभी तुच्छ हैं। जो कोई भी इस काल रूप महाचक्र में जकड़ा जाता है, वह अवश्य ही पिसता है। अर्थात मृत्यु को प्राप्त होता है। मृत्यु ही शाश्वत सत्य है। इस सत्य से कोई भी विमुख नहीं हो सकता। सृष्टिगत दैनंदिन कार्य-व्यवहार भी काल के अनुसार ही संपादित होता है। काल के आगे सभी बौने हैं। यह किसी के प्रति दयाभाव भी नहीं रखता। 
जो जन्म लेता है, एक दिन वह मृत्यु को भी अवश्य ही प्राप्त होता है। जिसका निर्माण हुआ है, उसका विनाश भी निश्चित है। सृष्टि में स्थायी कुछ भी नहीं है। सृष्टि स्वयं भी परिवर्तनशील है। जो कुछ भी दिखाई पड़ता है, वह स्वप्न ही तो है और स्वप्न कभी सत्य नहीं हुआ करता। 
काल के प्राबल्य से सभी परिचित हैं तदपि लोग इसकी अवहेलना कर सांसारिकता में ही लिप्त रहते हैं। ऐसे ही मोह-मायाग्रस्त लोगों को सचेत करते हुए संत कबीर कहते हैं कि समय मत गंवाओ और सच्चे गुरु की शरण में जाकर श्रद्धावत आत्मबोध का लाभ प्राप्त कर अपना कल्याण करो। 
संत कबीरवाणी !
सौजन्य -- १००८ कबीरवाणी ज्ञानामृत 

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