गुरुवार, 28 जनवरी 2016

= विन्दु (१)६५ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ६५ =*
*= नागर, निजाम को सिद्ध पात्र देना =*
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उक्त उपदेश देकर दादूजी ने उनको एक सिद्ध पात्र दिया और कहा - आप दोनों टहटड़े ग्राम में जाकर निर्गुण ब्रह्म का ध्यान करो । तब उन दोनों ने कहा - आप हमको अच्छी प्रकार निर्गुण ब्रह्म के ध्यान की पद्धति बताइये और दीक्षा देकर अब आप हमको अपने शिष्य भी बना लीजिये । तब दादूजी ने उन दोनों को दीक्षा देकर अपने शिष्य बना लिये और निर्गुण ब्रह्म का अन्तःध्यान बताकर उनको अच्छी प्रकार साधन पथ के पथिक बना दिये ।
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फिर कहा - इस पात्र को अपने पास सुरक्षित रखना और जब तुमको भूख सताने लगे तब इस पात्र को भोजन के पहले एक साफ़ श्वेत वस्त्र से ढँक दिया करो, फिर थोड़ी देर में तुम्हारा इच्छा के अनुसार सात्विक भोजन इस में मिल जाया करेगा । भोजन करके पात्र ऊंधा रख दिया करो फिर ध्यान में बैठ जाया करो । इस प्रकार अभ्यास करने से तुम्हारे विकार नष्ट होकर तुम्हें परब्रह्म का साक्षात्कार हो जायगा । यह पात्र टहटड़े में ही तुमको भोजन देगा, अन्य स्थान में नहीं देगा । अतः अन्य स्थान में जाने का विचार नहीं करना ।
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उक्त प्रकार ब्रह्म भजन में लगे रहोगे तब तक ही यह मृत्तिका पात्र(हँडिया) तुमको भोजन देता रहेगा और भजन नहीं करोगे तो यह भोजन नहीं देगा । फिर दोनों ने दादूजी महाराज को बारंबार प्रणाम किया और बोले - गुरुदेव ! हम दोनों आपकी बताई हुई विधि से निर्गुण ब्रह्म का भजन ही करैंगे, संसार प्रपंच से तो हम पहले ही उपराम थे किंतु हमको सम्यक् साधन का ज्ञान नहीं होने से इधर-उधर तीर्थों में भ्रमण कर रहे थे ।
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अब आपकी कृपा से हमारा साधन मार्ग खुल गया है । सब रहस्य आपने कृपा करके बता दिया है । आपने जो हमको परम निधि प्रदान की है, उसका बदला तो हम किसी भी प्रकार नहीं चुका सकेंगे ।
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*= नागर निजाम का टहटड़े जाना =*
ऐसा कहकर पुनः प्रणाम किया और संत प्रवर श्री दादूदयालुजी से आज्ञा लेकर दोनों टहटड़े ग्राम को चले गये और वहां बड़ी सावधानी से साधन करने लगे । भोजन का समय आता था तब गुरुदेव दादूजी का ध्यान करके पात्र को सीधा करके उस पर शुद्ध सात्विक श्वेत वस्त्र ढंक देते थे फिर अति शीघ्र ही उनमें इच्छानुसार सात्विक भोजन मिल जाता था । भोजन करके फिर पात्र ऊंधा करके रख देते थे और अपने साधन में लग जाते थे ।
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उक्त प्रकार साधन करके वे दोनों तत्त्व साक्षात्कार द्वारा महान् संत हो गये थे और दादूजी के ५२ शिष्यों में माने गये थे । इधर वसी ग्राम में दादूजी के दर्शन करने आंधी ग्राम के कुछ भक्त आ गये थे, उन्होंने आँधीग्राम पधारने का बहुत आग्रह किया । उनका भाव देखकर दादूजी महाराज आँधीग्राम को पधारे और कुछ दिन ठहर के भक्तों को संतुष्ट किया ।
(क्रमशः)

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