शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

= विन्दु (१)६५ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ६५ =*
*= आमेर पधारना =*
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फिर आँधीग्राम से आमेर पधारने का विचार किया और शिष्यों सहित थोलाई, रामगढ़ आदि ग्रामों में होते हुये आमेर के समीप आये तब जग्गाजी ने नगर में जाकर दादूआश्रम में विराजने वाले संतों को सूचना दी कि स्वामी दादूदयालुजी महाराज पधार गये हैं । तब गरीबदासजी आदि संत तथा नगर के भक्त लोग दादूजी के पास नगर के बाहर गये और दंड के समान पृथ्वी पर लेटकर दंडवत प्रणाम किया फिर दादूजी ने अपने अमृत तुल्य वचनों से सबको संतोष दिया ।
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दादूजी के दर्शन करके सब अति प्रसन्न थे । फिर पूर्ण सत्कार से संकीर्तन करते हुये भक्तगण स्वामी दादूजी को श्री दादू आश्रम पर लाये । मार्ग में दर्शनार्थियों की भारी भीड़ ने दर्शनों से अपने को कृतार्थ मानकर प्रसन्नता प्रकट की । बहुत से भक्त आश्रम पर आये और अपनी श्रद्धानुसार स्वामी दादूजी की पूजा की ।
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तेजोमय तखत दिखाने आदि सीकरी की कथायें यहां पहले ही प्रचलित हो रही थीं । आमेर से सीकरी और सीकरी से आमेर समाचार आते ही रहते थे और दादूजी महाराज विचरते हुए बहुत दिनों पश्चात् आमेर पधारे थे । दशहरा करके आमेर से सीकरी पधारे थे और वसंत पंचमी को पुनः आमेर पधारे थे ।
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ऐसा ही आत्मविहारीकृत दादू जीवन-चरित्र में लिखा है -
"दशरावा कर आप सिधाया, बसंत पंचमी पीछा आया ।"
सीकरी निवास के पश्चात् शेष समय उक्त स्थानों में(आगरा, मथुरा, अन्तर्वेद, उदेही, करोली, हिन्दौण, अलोदा, दौसा, वसी और आँधी तथा मार्ग के चलने में ) व्यतीत हुआ । सीकरी में शीतकाल में थे यह गुदड़ी के कारी लगवाने की कथा सिद्ध करती है । दीर्घ काल से आमेर में पधारे थे इससे आमेर के भक्तों ने वसंत पंचमी के दिन उत्सव मनाया ।
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फिर अवकाश प्राप्त करके कुछ भक्तों ने सीकरी की घटना तेजोमय तखत दिखाने आदि का प्रसंग चला कर दादूजी महाराज से पूछा - स्वामिन् ! तेजोमय तखत बादशाह के दरबार के मध्य कैसे प्रकट हुआ था और कैसे जग्गाजी ने अपना शरीर इतना बढ़ाया था ? इत्यादिक सीकरी की विचित्र घटनायें यहां सुनने में आई थीं सो कैसे घटित हुई थीं ? आप कृपा करके हमारे समाधान के लिये उनकी वास्तविकता बतायें । भक्तों का उक्त प्रश्न सुनकर परम दयालु दादूजी महाराज ने कहा -
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*= आमेर के भक्तों के सीकरी संबन्धी प्रश्नों के उत्तर =*
भाइयों ! वे सब तो प्रभु के ही कार्य थे । भगवान् सर्व प्रकार से ही भक्तों की रक्षा करते हैं ! वे भक्तों को दुःख से बचाकर सदा सुख ही देते हैं । यह तो उनकी सदा की ही नीति है ।
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दादूजी का उक्त वचन सुनकर हाथ जोड़े एक मुख्य व्यक्ति ने कहा - स्वामिन् ! आपके वचन तो सर्वथा सत्य ही हैं । जिनकी रक्षा परमेश्वर करते हैं उनका कोई अति प्रयत्न करके भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता है । यह हम आपके श्रीमुख के इस वचन से प्रथम भी समझ चुके हैं -
"जे तू रखे सांइयां, मार न सके नहिं कोय ।
बाल न बांका कर सके, जो जग वैरी होय ।"
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इसके उदाहरण - प्रहलाद, विभीषण, युधिष्ठर आदि अनेक हैं । उन प्रभु में भक्तवात्सल्यता तो पूर्णरूप से देखी जाती है । आप जैसे संतों को कोटि धन्यवाद है जिनके कार्य स्वयं भगवान् ही करते हैं । ऐसा होने पर भी आप में लेशमात्र भी किसी भी प्रकार का अभिमान नहीं दिखाई देता है । सर्व प्रकार आपके जीवन में प्रभु परायणता ही दृष्टि आती है । ऐसा कहकर भक्तों ने प्रणाम किया फिर दादूजी महाराज से आज्ञा माँगकर सब अपने-अपने घर चले गए ।
इति श्री दादूचरितामृत विन्दु ६५ समाप्तः ।
(क्रमशः)


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