शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

= गुरुदेव का अंग =(१/४३-५)

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
"श्री दादू अनुभव वाणी", टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= श्री गुरुदेव का अँग १ =
मुझ ही में मेरा धणी, पड़दा खोलदिखाइ ।
आतम सौं परमातमा, परकट आण मिलाइ ॥४३॥
गुरुदेव ! आपने कहा कि मेरा स्वामी परमात्मा मुझ में ही है तो फिर उसके जो पड़दा लगा है, उसे हटाकर तथा उपदेश द्वारा मेरी वृत्ति उसी में लगाकर परमात्मा को आत्मा से प्रत्यक्ष रूप में मिला दीजिए ।
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भर भर प्याला प्रेम रस, अपने हाथ पिलाइ ।
सद्गुरु के सदिकै१ किया, दादू बलि बलि जाइ ॥४४॥
सद्गुरो ! प्रभु - प्रेमाभक्ति - रस अपने मुख रूप हाथ से शब्द रूप प्याले में भर - भर के श्रवण रूप पान कराइये । मैंने तो अपने को आप पर निछावर१ कर दिया है । आप अवश्य कृपा करेंगे, मैं बारँबार आपकी बलिहारी जाता हूं ।
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सरवर भरिया दह दिशा, पँखी प्यासा जाइ ।
दादू गुरु परसाद बिन, क्यों जल पीवे आइ ॥४५॥
व्यापक ब्रह्म - सरोवर दशों दिशा में परिपूर्ण रूप से भरा है किन्तु फिर भी सकाम कर्म रूप पक्षों वाला जीवात्मा - पक्षी अतृप्त ही लोकान्तरों में जाता रहता है । गुरु कृपा बिना अज्ञानी निष्काम भाव में आकर, ब्रह्म सरोवर के ब्रह्मानन्द - जल का अनुभव रूप पान कैसे कर सकता है ? 
(क्रमशः)

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