शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

= १९ =

卐 सत्यराम सा 卐
बंध्या मुक्ता कर लिया, उरझ्या सुरझ समान ।
बैरी मिंता कर लिया, दादू उत्तम ज्ञान ॥ 
झूठा साचा कर लिया, काँचा कंचन सार ।
मैला निर्मल कर लिया, दादू ज्ञान विचार ॥ 
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साभार ~ Manoj Puri Goswami

~ उदार मानस, उदात्त दृष्टि~~
पुराने जमाने की बात है। ग्रीस देश के स्पार्टा राज्य में पिडार्टस नाम का एक नौजवान रहता था। वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर विशिष्ट विद्वान बन गया था।
एक बार उसे पता चला कि राज्य में तीन सौ जगहें खाली हैं। वह नौकरी की तलाश में था ही। इसलिए उसने तुरन्त अर्जी भेज दी। लेकिन जब नतीजा निकला तो मालूम पड़ा कि पिडार्टस को नौकरी के लिए नहीं चुना गया था।
जब उसके मित्रों को इसका पता लगा तो उन्होंने सोचा कि इससे पिडार्टस बहुत दुखी हो गया होगा, इसलिए वे सब मिलकर उसे आश्वासन देने उसके घर पहुंचे।
पिडार्टस ने मित्रों की बात सुनी और हंसते-हंसते कहने लगा, "मित्रों, इसमें दुखी होने की क्या बात है? मुझे तो यह जानकर आनन्द हुआ है कि अपने राज्य में मुझसे अधिक योग्यता वाले तीन सौ युवा हैं।"
उदात्त दृष्टि जीवन में प्रसन्नता की कुँजी है।

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