शनिवार, 16 जनवरी 2016

= ज्ञानसमुद्र(प्र. उ. ९) =


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🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷
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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ प्रथम उल्लास =*
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*छप्प्य*
*सुत कलत्र निज देह, आपु कौं बंधन जांनत ।*
*छुटौं कौंन उपाय, इहै उर अंतर आंनत ॥*
*जन्म मरन की शंक, रहै निश दिन मन माँहीं ।*
*चतुराशी के दुःख, नहीं कछु बरने जाँहीं ॥*
*इहिं भाँति रहै सोचत सदा, संतनि कौं पूछत फिरै ।*
*को है ऐसौ सद्गुरु कहीं, जो मेरौ कारज करै ॥९॥*
श्रीसुन्दरदास जी महाराज कहते हैं - हम जिज्ञासु उसे मानते हैं जो अपने पुत्र, पत्नी, और अपने देह को बन्धनरूप मानता हुआ 'इनसे किस उपाय से छुटकारा पाऊँ' - यही हृदय में चिन्तन करता रहता है, जो दिन रात अपने जन्म-मरण तथा चौरासी लाख योनियों में जाने से होने वाले अवर्णनीय दु:खों के विषय में विचार करता रहता है । 
जो इस प्रकार स्वयं सतत चिन्तन करता रहता है, और स्थान स्थान पर सन्त महात्माओं की शराण में जाकर पूछता रहता हे कि भगवन् ! ऐसा सद्गुरु कौन है, और वह कहाँ है, जो मेरी इस तत्वजिज्ञासा को शान्त कर सके ! ॥९॥
(क्रमशः)

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