रविवार, 10 जनवरी 2016

= १६३ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू देव निरंजन पूजिये, पाती पंच चढाइ ।
तन मन चंदन चर्चिये, सेवा सुरति लगाइ ॥ 
भक्ति भक्ति सब कोइ कहै, भक्ति न जाने कोइ ।
दादू भक्ति भगवंत की, देह निरन्तर होइ ॥ 
===============================
साभार ~ Anand Nareliya ~

बुद्धों से प्रेम करना हो, तो एक ढंग है। सांसारिकों से प्रेम करना हो, तो एक और ढंग है। सांसारिक से प्रेम करो, तो संसार की भेंटें उसके पास लाओ हीरे—जवाहरात लाओ, गहने लाओ, साड़ी लाओ; सुंदर वस्त्र लाओ। सांसारिक से प्रेम करो, तो संसार की भेंट लाओ। बुद्धों से प्रेम करो तो बुद्धत्व की भेंट लाओ। और कोई चीज काम नहीं पड़ेगी। बुद्धों से प्रेम करो, तो एक दिन बुद्ध हो जाओ। एक दिन उनके चरणों में आकर अपने सिर को रखो, ताकि वे तुम्हारे शून्य को देख सकें। ताकि वे कह सकें—कि ठीक, तू धन्यभागी। तू पहुंच गया। एक दिन अपना शून्य उनके चरणों में चढ़ाओ।
बुद्ध ने कहा, माला—गंध आदि से पूजा करने वाले मेरी पूजा नहीं करते, पूजा करने का ढोंग कर लेते हैं।
सस्ती पूजा है—माला—गंध—फूल। अपने को नहीं चढ़ाते। कूड़ा—करकट चढ़ाकर सोचते हैं, काम पूरा हो गया!
पूजा तो वही कर रहा है, जो धर्म के अनुसार चल रहा है। जो मैंने कहा है, उसके अनुसार चल रहा है। चाहे कभी मेरे चरणों में न आए। लेकिन जो मेरे अनुसार चल रहा है, जिसने मेरी बात समझी और पकड़ी, वही मेरी पूजा करता है।
आंसुओ के बहाने से भी कोई सार नहीं है। मत रोओ। समय मत गंवाओ। और ऐसा करोगे, तो मुझे समझे ही नहीं। यही तो समझा रहा हूं जीवनभर से कि यहां सब क्षणभंगुर है। यहां कुछ भी शाश्वत नहीं है। इसलिए किसी से मोह न बांधो। मुझसे भी नहीं। कम से कम मुझसे तो बिलकुल नहीं।
रोओ नहीं; सोओ नहीं—जागो।...OSHO

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें