बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

= विन्दु (२)६७ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ६७ =*
*= शिष्य माखूजी =*
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माखू ने पूछा - भगवन् ! उस तत्त्व का स्वरूप भी बताइये, जिसके जानने पर उक्त अद्वैत स्थिति रूप अवस्था प्राप्त होती है । तब दादूजी ने यह पद कहा -
"ऐसा तत्त्व अनुपम भाई, 
मरे न जीवे काल न खाई ,
पावक जरे न मारा मरई, 
काटा कटे न टारा टरई ॥१॥
अक्षर खिरे न लागे काई, 
शीत घाम जल डूब न जाई ॥२॥
माटी मिले न गगन विलाई, 
अघट एक रस रह्या समाई ॥३॥
ऐसा तत्त्व अनूपं कहिये, 
सो गह दादू काहे न रहिये ॥४॥
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हे भाई ! ब्रह्मात्म तत्त्व ऐसा अनुपम है न मरता है, न जीवित रहता है, न उसे काल खाता है । अग्नि से जलता नहीं, मारने से मरता नहीं, काटने से कटता नहीं, हटाने से हटता नहीं, वह अविनाशी है, उसका नाश नहीं होता । उसके मैल, शीत, घाम आदि नहीं लगते । वह जल में नहीं डूबता, मिट्टी में नहीं मिलता, आकाश में लय नहीं होता, वह घटता नहीं, एक रस है और सब में समाया हुआ है । ऐसा जो अनुपम आत्म स्वरूप ब्रह्म तत्त्व कहलाता है, उसी को अभेदरूप से ग्रहण करके क्यों नहीं रहता ?
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उक्त उपदेश सुनकर माखूजी को परमानन्द का अनुभव होने लगा फिर वे दादूजी के ही शिष्य होकर दादूजी की साधन पद्धति के अनुसार कुछ दिन दादूजी के पास रहकर साधन तथा सत्संग करते रहे फिर सर्व प्रकार संशय रहित होने पर दादूजी महाराज को परम श्रद्धा पूर्वक प्रणाम कर जाने की आज्ञा माँगी, आज्ञा मिलने पर वे राजस्थान के हाडोती प्रदेश की चम्बल नदी के तट गंगायचा ग्राम में स्थायी रूप से रहते हुये साधन करके महान् संत हो गये । यह दादूजी के ५२ शिष्यों में हैं और अच्छे अनुभवी संत हो गये हैं ।
(क्रमशः)

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