रविवार, 14 फ़रवरी 2016

= गुरुदेव का अंग =(१/७०-२)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= श्री गुरुदेव का अँग १ =
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दादू मन फकीर माँहीं हुआ, भीतर लीया भेख ।
शब्द गहै गुरुदेव का, मांगे भीख अलेख ॥७०॥
हमारा मन भीतर ही गुरुदेव के शब्दों का ज्ञान ग्रहण करके तथा नाना साँसारिक वासना रूप घर को त्याग करके, असंगता रूप भेष को लेकर साधु बन गया है और लेखबद्ध न हो सके, उस परब्रह्म का साक्षात्कार रूपी भिक्षा मांगता है ।
दादू मन फकीर सद्गुरु किया, कह समझाया ज्ञान ।
निश्चल आसन बैस कर, अकल पुरुष का ध्यान ॥७१॥
सद्गुरु ने अपने ज्ञान - कथन के द्वारा समझा कर हमारे मन को भीतर ही वासना रहित करके साधु बना दिया है । अब वह एकाग्रता रूप निश्चल आसन पर बैठ करके कला - विभाग रहित पुरुष के ध्यान में स्थित रहता है ।
दादू मन फकीर जग थैं रह्या, सद्गुरु लीया लाइ ।
अह निशि लागा एक सौं, सहज१ शून्य२ रस खाइ ॥७२॥
अब हमारा साँसारिक वासनाओं से रहित साधु मन सँसार में जाने से रुक गया है । उसे सद्गुरु ने परमेश्वर में लगा दिया है । अब वह दिन रात अद्वैत ब्रह्म - चिन्तन में ही लगकर निर्द्वन्द्वावस्था१ में निर्विकल्प२ ब्रह्मानन्द - रस का ही आस्वादन करता रहता है ।
(क्रमशः)

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