गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

= गुरुदेव का अंग =(१/७६-८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= श्री गुरुदेव का अँग १ =
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कस्तूरिया मृग
दादू मँझे चेला मँझ गुरु, मँझे ही उपदेश ।
बाहर ढूंढैं बावरे, जटा बधाये केश ॥७६॥
जैसे कस्तूरिया मृग की नाभि में कस्तूरी होती है और वह उसे बाहर घास आदि में खोजता है, वैसे ही उपास्य को बाहर खोजने वालों का भ्रम दूर कर रहे हैं - भीतर सात्विक श्रद्धायुक्त चित्त ही शिष्य है, ज्ञान युक्त मन ही गुरु है, विचार ही उपदेश है, आत्मस्वरूप ब्रह्म ही उपास्य है, किन्तु अज्ञानी जन केशों की जटा बढ़ाना आदि भेष बनाकर ब्रह्म को बाहर देशान्तरों में खोजते हैं ।
मन का दमन
मन का मस्तक मूँडिये, काम क्रोध के केश ।
दादू विषै विकार सब, सद्गुरु के उपदेश ॥७७॥
जो गुरु होने योग्य न होकर भी शिष्य बनाते हैं उन्हें कह रहे हैं - सद्गुरु के उपदेश द्वारा अपने मन के मिथ्या अहँकार रूप शिर के काम, क्रोध, विषय - विकारादि सब केश काट करके प्रथम उसे ही शिष्य बनाओ ।
दादू पड़दा भरम का, रह्या सकल घट छाइ ।
गुरु गोविन्द कृपा करैं, तो सहजैं ही मिट जाइ ॥७८॥
सभी के अन्त:करण में अज्ञान रूप पड़दा लगा है । यह अन्य किसी भी उपाय से हटने वाला नहीं है किन्तु गुरु और गोविन्द यदि कृपा करें तो अनायास ही हट जाता है ।
(क्रमशः)

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