गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

= विन्दु (२)६८ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ६८ =*
*= हिंगोलगिरि आदि का आमेर आना =*
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वे जहाज के व्यापारी गुजरात देश के देवनगर के थे । जहाज तारने की दादूजी से प्रार्थना करके उन सब लोगों ने जहाज के ऊपर के खंड पर चढ़कर 'दादू दादू' संकीर्तन किया था और संकल्प किया था कि दादूजी महाराज हमारा जहाज तार देंगे तो हम इस जहाज में सात-कोटि का माल है इसका आधा साढे तीन कोटि पुण्य में लगा देंगे ।
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उस संकल्प के अनुसार देवनगर में आकर उन्होंने बहुत से साधु ब्राह्मणों को जिमाया और भी अनेक पुण्य कार्य किये तथा उस जहाज में बैठे हुये हिंगोलगिरि और कपिल मुनि दो सन्यासी साधुओं ने दादूजी से प्रार्थना करने की प्रेरणा की थी उनको भी बहुत सा धन दिया और उन दोनों संतों के साथ सप्रेम बहुत सा धन देकर अपने मुनीम भेजे और कहा - यह धन दादूजी महाराज को भेंट करना और कहना, आपकी कृपा से सात सौ मनुष्य के प्राण बचें हैं तथा सात कोटि का माल बचा है । उस धन में से आधा धन पुण्य में लगाने का संकल्प किया था अतः यह आपकी भेंट भी आप ही का धन है, आपने ही उस धन को बचाया था । इसलिए इसे आप ग्रहण करने की कृपा अवश्य करें ।
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फिर वे दोनों संत और मुनीम लोग गुजरात से राजस्थान के आमेर नगर में आये । दादूजी का पता पूछकर दादूजी के आश्रम में गये । दादूजी का दर्शन करके अति हर्षित हुये फिर प्रणाम करके उस धन की भेट दादूजी के आगे रक्खी । तब दादूजी ने पूछा - यह क्या है ? हिंगोलगिरि हाथ जोड़कर सभा के मध्य बोले स्वामिन् ! देवनगर के साहूकारों की जहाज पश्चिम समुद्र में एक स्थान पर डूबने लगी थी ।
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उसी जहाज में हम दोनों संन्यासी भी थे । व्यापारी साहूकारों ने जहाज को बचाने के सब उपाय किये किन्तु जहाज डूबता ही जा रहा था, फिर सबने अपने-अपने इष्टदेव मनाये किन्तु जहाज डूबने की स्थिति से नहीं रुका । उस जहाज में रज्जब नामक मुख्य साहूकार था, उसको हम दोनों सन्यासियों ने कहा - तुम सब मिलकर संतप्रवर दादूजी से जहाज तारने की प्रार्थना करो और 'दादू-दादू' नाम भी उच्चस्वर से गाओ तो जहाज अवश्य तैर जायगा ।
(क्रमशः)

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