शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

= ज्ञानसमुद्र(तृ. उ. १-४) =


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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ तृतीय उल्लास =*
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*शिष्य उवाच ~ चौपई*
*हे प्रभु नवधा कही कनिष्टा ।*
*प्रेमलक्षणा मध्य सपष्टा ।* 
*परा भक्ति उत्तमा बखांनी ।*
*ये तीनौं में नीकैं जांनी ॥१॥*
(शिष्य विनयपूर्वक गुरुदेव से निवेदन करता है-) प्रभो ! आपने नवधा भक्ति के रुप में कनिष्ठा भक्ति का, प्रेम भक्ति के रूप में मध्यमा भक्ति का, तथा उत्तमा भक्ति का विस्तार से वर्णन कर दिया । इस वर्णन से मैं इन तीनों को अच्छी तरह से समझ गया ॥१॥ 
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*अब प्रभु योग सिधांत सुनावहु ।*
*ताके अंग मोहि समझावहु ।* 
*तुम सर्वज्ञ जगत गुरु स्वांमी ।*
*कहहु कृपा करि अंतर्यामी ॥२॥*
हे स्वामीन् ! अब आप मुझे भक्ति-सिद्धान्त की तरह योग के सिद्धान्तों के विषय में भी सांगोपांग अच्छी तरह समझा दें । आप ही कृपा करके ऐसा ज्ञान देने में समर्थ है; क्योंकि आप सब शास्त्रों के ज्ञाता, जगत् को सन्मार्ग का उपदेश देनेवाले तथा सबके हृदय की बात को जानने वाले हैं ॥२॥
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*श्री गुरुरुवाच ~ दोहा*
*तैं सिख पूछ्यौ चाहि करि, योग सिधांत प्रसंग ।*
*तोहि सुनाऊँ हेत सौं, अष्ट योग के अंग१ ॥३॥*
{१- योग के अष्ट अंग(अन्वय) । योग के छह अंग ही ‘हठयोगप्रदीपिका’ ‘गोरक्ष-पद्धति’ आदि में हैं । अन्य मत से पूर्व में यम नियम और दो अंग दिये हैं । यथा ‘हठयोगप्रदीपिका’ में(उपदेश१) अढाई श्‍लोक प्रक्षिप्त हैं उन में यम नियम हैं । 
‘पातंजल योगसूत्र’ साधन पाद के २९ वें सूत्र में 
(“यमनियमा-सनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावगांनि”) यम नियम प्रथम ही है । श्रीसुन्दरदासजी नें राजयोग के अनुसार, प्रसिद्ध अष्टांगयोग है ऐसा समझकर, वा अन्य मत की छाया से, हठयोग में भी आठ ही अंग लिखना ठीक समझा होगा, क्योंकि आगे के छन्द में यम-नियम को ‘हठयोगप्रदीपिका’ से लेना स्वयं ही कहते हैं ।} 
हे शिष्य ! तूने मुझसे भक्तिसिद्धान्त सुनने के बाद, प्रसंगवश योग सिद्धान्त के प्रति जिज्ञासापूर्वक प्रश्‍न किया है । अत: मैं तुझे तेरी हितकामना से योग के आठों अगों को विस्तार से सुनता हूँ ॥३॥
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*तिन के अन्तर्भूत हैं, मुद्राबन्ध समस्त ।* 
*नाडी चक्र अमाव सब, आबहि तेरे हस्त ॥४॥* 
योग के उन आठों अंगों के अन्तर्गत जितने भी मुद्रा और बन्ध, नाडी, चक्र तथा अभाव है- इन सब का ज्ञान तुम्हें इस वर्णन से ही जायगा ॥४॥
(क्रमशः)

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