बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

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卐 सत्यराम सा 卐
कर्म फिरावैं जीव को, कर्मों को करतार ।
करतार को कोई नहीं, दादू फेरनहार ॥ 
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साभार ~ Ramgopal Goyal Rotiram

~ "सद् सन्तों के सद् उद्बोधन" ~
गीता में भगवान ने स्वयं अपने मुख से कहा है कि, मिश्रित कर्मों का फल मानव शरीर है । यानी कुछ अच्छे और कुछ बुरे, दोनों तरह के मिश्रित कर्म, पूर्व जन्म में बन जाने के कारण ही मनुष्य शरीर मिलता है । अगर सबके सब सत्कर्म होते तो ऊर्ध्वगति होती, और सबके सब बुरे कर्म होते, तो पशु योनि मिलती । इसका मतलब यह हुआ कि, अगर मानव शरीर मिला है, तो कुछ न कुछ और कभी न कभी कष्ट तो भोगना ही पडेगा ।
भगवान ने गीता 14/18 में कहा है -
ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्वस्था मध्ये तिष्ठान्ति राजसाः।
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ।।
अर्थ - सत्व गुण में स्थित मनुष्य ऊर्ध्व लोकों में जाते हैं, रजोगुण में स्थित मनुष्य मृत्युलोक में जन्म लेते हैं, और निंदनीय तमोगुण की वृत्ति में स्थित तामसी मनुष्य अधोगति, यानी पशु योनि को प्राप्त होते हैं । सात्विक - राजस अथवा तामस मनुष्य की । गति तो अंतिम चिंतन के अनुसार होगी, लेकिन सुख दुःख का भोग उनके कर्मों के अनुसार ही होगा ।
उदाहरण के लिए, किसी के कर्म तो अच्छे हैं, पर अंतिम चिंतन अगर पशु का हो गया, तो अंतिम चिंतन के अनुसार वह पशु योनि को प्राप्त होगा(अन्ते मति सा: गति) । परन्तु उस योनि में भी उसे कर्मों के अनुसार काफी सुख - आराम मिलेगा । इसी प्रकार किसी के कर्म तो बुरे हैं, पर अंतिम चिंतन के अनुसार वह मनुष्य बन गया, तो उस मनुष्य योनि में भी, उसे कर्मों के अनुसार दुःख - शोक - रोग आदि ही मिलेंगे, और यह भी सत्य है कि, अंतिम चिंतन धर्मी व्यक्ति का ही धर्मानुकूल होता है, अधर्मी का नहीं । 

इसलिए जीवन में प्रारब्धावश सुख - दुख तो आने ही हैं, चाहे वह संत हो, ज्ञानी हो या संसारी । बस अंतर यही है कि, आने वाले कष्टों को ज्ञानी व्यक्ति उस समय विवेक से काम लेकर सहजता से काट लेता है, उसकी सोच ज्ञान के कारण उस समय सहज ही यह बन जाती है कि, यह तो मेरे ही पूर्व के किसी बुरे कर्म का परिणाम है, और वह उन कष्टों को हँस - हँस कर काट लेता है। 

भगवान पतंजलि ने कहा है कि, विवेकी पुरुष को कष्ट कहाँ । जबकि विवेकहीन व्यक्ति उन कष्टों के लिए वजाय खुद को दोष देने के, भगवान को दोष देने लगता है कि, मैंने उसका क्या ? बिगाडा था, जो उसने मुझे यह कष्ट दिया, और रोने पीटने - चिल्लाने में समय जाया करके अपने कष्टों को और बढा लेता है, वह ज्ञानी व्यक्ति की तरह से धैर्य से काम नहीं लेता, कि जब वे सुख के दिन नहीं रहे, तो ये दुख के दिन भी नहीं रहेंगे ।

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