बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

= ज्ञानसमुद्र(द्वि. उ. २१) =

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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ द्वितीय उल्लास =*
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*अर्चना(५)*
*तहं भाव ही की घंट झालरि,* 
*संख ताल मृदंग ।* 
*तहं भाव ही कै शब्द नाना,* 
*रहै अतिसै रंग ॥*
*यह भाव ही की आरति करि,* 
*करै बहुत प्रणाम ।* 
*तब स्तुती बहु बिधि उच्चरै,* 
*धुनि सहित लै लै नाम ॥२१॥*
इस तरह घण्टा, घडियाल, संख, ढोलक आदि पूजा के उपकरण मन से कल्पित कर इनका इष्टदेव के मानसिक कीर्तन में उपयोग करैं । और इन सब के सहकार से अतिशय प्रेमविह्वल हो भगवान की आरती(मानसी पूजा) करैं । फिर जितना हो सके उतना मन ही मन प्रणाम करैं, और इष्टदेव का नाम ले लेकर लय के साथ नीचे लिखे अनुसार इष्टदेव की स्तुति करैं ॥२१॥
(क्रमशः)

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