गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

= विन्दु (२)६८ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ६८ =*
*= मानसिंह का राजगद्दी पर बैठना =*
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राजा भगवत् सिंह का देहान्त हो गया । फिर राजगद्दी पर उनके बड़े पुत्र मानसिंह बैठे । वे जब बहुत दिनों के पश्चात् बादशाह के पास से आमेर आने लगे तब उनके आने की सूचना पाकर आमेर के श्रीमान् जागीरदार, अधिकारी आदि राजा मानसिंह से मिलने के लिये अपनी योग्यतानुसार भेंट लेकर उनके सामने जाने लगे और कुछ लोग तो मनोहरपुर में ही जा मिले, कुछ लोग अचरोल में मिले और कुछ लोग रामगढ़ में मिले ।
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जो दूर नहीं जा सके वे लोग आमेर नगर के बाहर जाकर मिले, शेष सब राज भवन में पहुंचने पर मिले । आमेर के मुख्य-मुख्य सभी लोग राजा से मिलने गये, एक दादूजी महाराज ही नहीं गये । जब राजा के आने के पश्चात् दो तीन दिन तक भी दादूजी राजा के पास नहीं आये तब दादूजी से ईर्ष्या करने वाले लोगों ने राजा को कहा - राजन् ! यहां रहने वाले मुख्य मुख्य लोग सभी आपसे मिलने आये किन्तु दादू नहीं आया है ।
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दादू को बड़ा अभिमान है, वह आपके सम्मान के लिये भी आपके पास नहीं आया है तथा और भी अनीति के काम करता रहता है । राज ने पूछा - और क्या अनीति करते रहते हैं ? निन्दकों ने कहा - हिन्दू मुसलामानों को समान ही समझता है । ब्राह्मण बणियों में भी कोई भेद नहीं मानता और कहता है -
"आतम भाई जीव सब, एक पेट परिवार ।
दादू मूल विचारिये, तो दूजा कौन गुवाँर ॥"
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उसके व्यवहार ने तो हमारे वेदों को भी झूठा बना दिया है । कोई मर जाता है तो उसे वन में छुड़वा देता है - अभी इन दिनों एक साधु मर गया था उसको वन में डलवा दिया था । न तो अग्नि संस्कार करवाता है और न भूमि में ही गड़वाता है । उसने तो हिन्दू तथा मुसलमान दोनों में किसी एक का भी मार्ग नहीं पकड़ा है दोनों को ही छोड़कर मन माने ढंग से चलता है और जनता को भी अंडबंड उपदेश देकर बिगड़ता है । आपको चाहिये उसे सन्मार्ग में लगावें नहीं तो उसके व्यवहार से प्रतिदिन पाप ही बढ़ता जायगा ।
(क्रमशः)

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